इस तरह हम प्रकृत्ति के अस्तित्व को अक्षुण्ण रख सकते हैं

प्रकृत्ति से लगाव उसकी देखरेख हमारा परम् कर्तव्य है।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 11 Aug, 2022 | 1 min read
Prakrti hai to ham hain Prakriti ke bina insaan Prakrti ki raksha ke upay Nature protection Nature se hamara astitva hai Nature ko kaise safe rakhen

जिस तरह एक माँ अपने तन पर अनगिनत दुख सहन करती है फिर भी हमारे हिस्से में ख़ुशियों को अर्पित करने में कोई कमी छोड़ती है ठीक उसी तरह प्रकृत्ति भी हमारे हिस्से में बेइंतहा ख़ुशी अर्पित करती है बेशक उसे अथाह दुःख ही क्यों न सहन करना पड़े। मानव को इस जगत का श्रेष्ठ बुद्धिजीवी प्राणी कहा जाता है और हम मानव क्या करते हैं प्रकृत्ति के लिए कुछ भी नहीं। प्रकृत्ति हमारे लिए दिन रात श्रम करती है और हम उसके लिए कुछ करना तो दूर उसके साथ दिन रात खिलवाड़ करते हैं, ऐसा करना एक दिन हमें ही नुकसान पहुंचाएगा इस बात से हम अनभिज्ञ हैं।


पीने के लिए पानी, रहने के लिए भूमि, शरीर में विटामिन्स की कमी की पूर्ति हेतु स्वादिष्ट फल, जीवनदायी ऑक्सीजन, ये सब हम ख़ुद से निर्मित नहीं कर सकते ये सब हमें प्रकृत्ति ही देती है। इस बात को हम कदापि नहीं भूलना चाहिए।


       प्रकृति हमारा कितना ख़्याल रखती है तो हमारा भी परम् कर्तव्य बनता है कि हम भी उसका तनिक तो ज़रुर ख्याल रखें ताकि हमारा अस्तित्व कायम रहे और आने वाली पीढ़ियों को भी कोई कठिनाई महसूस न हो। प्रकृत्ति को यदि हम ख़ुश रखेंगे तो निश्चित ही प्रकृत्ति भी हमें निराश नहीं करेगी कभी।


इस तरह हम प्रकृत्ति के अस्तित्व को अक्षुण्ण रख सकते हैं:-


●हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे प्रकृत्ति को थोड़ा-सा नुकसान हो, प्रकृत्ति को थोड़ा-सा भी नुकसान पहुंचाने का मतलब है हमारा सबसे बड़ा नुकसान।


●प्रकृत्ति द्वारा प्रदत्त समस्त संस्थान को हमें कीमती वस्तु की भाँति मूल्यवान समझना होगा एवं उन संसाधनों के संरक्षण हेतु सदैव ही सार्थक प्रयास करना होगा।


●पर्यावरण में संतुलन कायम रहे इसलिए हमें अपने असंतुलित जीवनशैली को संतुलित करना होगा, एवं प्रकृत्ति की पुकार को ध्यान से सुनना होगा और तत्पश्चात हमें कुछ बेहतर करना होगा प्रकृत्ति के लिए।


●किसी विशेष अवसर पर यथा: जन्मदिन, विवाह अथवा अन्य कोई मांगलिक अवसर हमें एक लक्ष्य बनाना चाहिए कि हम इस दिन तो निश्चित ही वृक्ष लगाएं ऐसा करने से हमसे प्रकृत्ति कभी भी नाखुश नहीं होगी और हमें प्रकृत्ति और ख़ुश रहने का एक अनमोल अवसर देगी।


●प्रकृत्ति की रक्षा का संकल्प न केवल हमें ख़ुद ही लेना होगा बल्कि औरों को भी प्रकृत्ति का महत्व बताते हुए दूसरों को भी प्रकृत्ति की रक्षा का संकल्प दिलवाना होगा। क्योंकि बदलाव एक के चाहने से संभव नहीं है, सृष्टि का अस्तित्व ही प्रकृत्ति पर निर्भर है तो हमें मिलकर इसकी रक्षा का संकल्प लेना होगा।


●प्रकृत्ति हमसे एक पल के लिए अपना नाता नहीं तोड़ती है तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि सप्ताह में एक दिन ही सही हम प्रकृत्ति के साथ मन भर नाता जोड़ें, प्रकृत्ति हमसे क्या चाहती है यह जानने की कोशिश करें व उसकी उन ज़रुरतों को पूरा करने की भरसक कोशिश करें।


       हमारा अस्तित्व कहीं न कहीं प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति के बिना हम अपनी कल्पना नहीं कर सकते हैं। प्रकृति हमारी रीढ़ की हड्डी की भाँति है, जिसके ऊपर हम पूर्णतः निर्भर हैं। तो हमें अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखने खातिर प्रकृति को संरक्षित करना होगा, अन्यथा एक दिन हम स्वयं का अस्तित्व ही खो देंगे।


©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित


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