परिवार की ज़िम्मेदारी

ज़िम्मेदारी को परिभाषित करती एक लघुकथा

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 30 Dec, 2021 | 1 min read
Story for kids paperwiffkids Hindi short story Bal rachna

"पापा! लगातार काम करते-करते आपका हाथ भी दुखता होगा ना? और, पैर में भी दर्द का अनुभव होता होगा ना? दर्द दूर करने वाला मलहम लगा दूं पापा?" पिता ने बेटे से कहा, "बेटे! जब मैं काम करके घर आता हूँ, और तुम्हें मुस्कुराता देखता हूँ तो उस वक्त ही तन का दर्द मीलों दूर भाग जाता है। बेटे! तुम अपने पिता के विषय में सोचकर अत्यधिक चिंतित मत होना कभी। तुम्हारे पिता बहादुर हैं बेटे। उन्हें कोई भी मुश्किल नहीं हरा सकती।" सात वर्षीय पुत्र को तसल्ली देते हुए एक साँस में ही पिता ने अपनी बात कह दी। और फिर पिता अपने बेटे के चेहरे पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराकर घर से बाहर निकल गए। 

           अगले दिन पुनः साजन ने अपने पिता से प्रश्न करना आरंभ कर दिया। साजन ने कहा, "पापा! कड़ाके की ठंड में काम करने के कारण आपके पाँवों फूल गए हैं। फिर भी आप स्वयं के लिए जूते नहीं खरीदते हैं। ऐसा क्यों पापा, ऐसा क्यों? क्या ठंड केवल आपके बेटे को ही लगती है? क्या आपको ठंड नहीं ठिठुराती है? पिता ने अपना दर्द सीने में छुपाते हुए बेटे से मुस्कुराकर कहा, "बेटे! तुम अभी छोटे हो, जब तुम भी बड़े हो जाओगे तो तुम्हें भी काम करने से नहीं होगी थकान की अनुभूति और न ही तुम्हें ठंड की ठिठुरन का होगा आभास। परिवार की ज़िम्मेदारी जिनके ऊपर होती है ना बेटे! उन्हें कोई भी मुश्किल नहीं सताती है!" पिता द्वारा प्राप्त उत्तर से अभी भी साजन असंतुष्ट था। साजन प्रश्न का उत्तर सुनते ही बाहर अपने दोस्तों के बीच चला गया और उसके पिता के शुष्क नयन सजल हो गये साजन के बाहर जाने के पश्चात।



©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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Comments

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  • Amarjeet kumar · 2 years ago last edited 2 years ago

    Wow sir es kahani ko padhkar Dil khus ho gaya hame ees kahani se bho t kuch sikhne ko mila

  • Kumar Sandeep · 2 years ago last edited 2 years ago

    धन्यवाद अमरजीत, मेरी कहानी पढ़कर कहानी पर टिप्पणी प्रेषित करने हेतु।🙏

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