एकता

एक प्रेरणादायक पारिवारिक लघुकथा।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 11 Oct, 2020 | 1 min read
Rishtey

"रामू तेरे चेहरे पर आज मुस्कान की जगह मायूसी पसरा है। आखिर क्यों?" अपने छोटे भाई के हाथ पर अपना हाथ रखकर राम ने पूछा। रामू इस उधेड़बुन में था कि किस तरह अपनी बात भईया के समक्ष रखूं। कहीं भईया क्रोधित तो नहीं हो जाएंगे। फिर भी रामू ने अपने मन की बात अपने बड़े भाई राम के समक्ष व्यक्त करते हुए कहा, "भईया मुझे यदि भाभी दो थप्पड़ भी लगा देगी किसी बात पर, तो मैं भाभी से यह प्रश्न कदापि नहीं पूछूंगा कि भाभी आपने मुझे क्यों थप्पड़ लगाया। पर भाभी जब माँ के साथ ग़लत तरह से बात करती है। माँ जब किसी बात के लिए समझाती है तो माँ की बातों को दरकिनार कर माँ को ही तीखी बातें सुनाने लगती हैं, तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। कल रात मर्यादा लांघते हुए भाभी ने माँ को अशोभनीय बातें सुनाईं। बताइए भईया मैं क्या करूं?" एक साँस में ही अपने मन की बात अपने बड़े भाई के समक्ष रामू ने रख दिया। राम भाई को समझाते हुए कहता है, "छोटे भाई, मुझे गर्व है तुम्हारे ऊपर। परिवार को एकता के सूत्र में बांधे रखने के लिए तुम सचमुच हमेशा से सोचते रहे हो। तुम चिंता मत करो रामू मैं आभा को समझाऊंगा। आभा बड़ी तो है पर उसके अंदर आदर्श संस्कार की अत्यंत कमी है। उसे तो हमारे छोटे भाई से सीखने की ज़रूरत है। आभा अब तक माँ को समझ नहीं पाई है। एक दिन ज़रूर समझ जाएगी।" दरवाजे के बाहर खड़ी आभा सब बातें सुन रही थीं। अनायास ही आभा की आँखों से आँसू बहने लगे। दौड़ते हुए आभा सासुमां के पांवों को पकड़कर फफक-फफककर रोने लगी। रामू की माँ ने बहू को गले से लगाते हुए कहा, "बहू तू रो मत! मैं तो हमेशा ही तुम्हें अच्छी सीख देना चाहती हूँ। मुझे आज इस वक्त बेहद ख़ुशी हो रही है कि तुम्हें आज यह बात समझ में आ गई।" आभा ने सदा ही परिवार को एकता के सूत्र में बांधे रखने का वचन सासुमां को दिया।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित


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Kumar Sandeep

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice

  • Praveen Miss · 3 years ago last edited 3 years ago

    Informative story

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