सोच-समझकर फ़ैसला लीजिए !

Topic-रिश्तों की डोर Article-03 रिश्तों की डोर में मजबूती लाती है माँ !

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 07 May, 2020 | 1 min read

कई बार ज़िंदगी में ऐसे मोड़ भी आते हैं, जब ऐसा लगता है कि एक पल में बरसों पुराना रिश्ता महज एक बात के लिए एक गलती की वजह से टूट गया। उस पल ख़ुद को संभालना मुश्किल-सा लगता है। बात कैसी भी हो? हालात कैसे भी हो? पर बरसों पुराने रिश्तों को तोड़ना नहीं चाहिए। रिश्तों की डोर को कमजोर कर सकता है हमारे द्वारा लिया गया एक गलत फैसला। इसलिए सोच समझकर कदम उठाना चाहिए,सोच- समझकर फ़ैसला लेना चाहिए।

आपको यह बात तो पता ही हैं कि घर में माँ की भूमिका अहम होती है। बच्चे बेशक बिना सोचे समझे बरसों पुराने रिश्तों को बिगाड़ देते हैं पर माँ हमेशा रिश्तों को संभालने का प्रयास करती है। माँ कभी नहीं चाहती है कि रिश्तों में दरार उत्पन्न हो। रिश्तों की डोर को मजबूती से बांधे रखने का कार्य करती है माँ।

हम सभी को माँ से सीख लेने की ज़रूरत है। हमें कोई भी कदम बिना सोचे समझे नहीं उठाना चाहिए। रिश्तों की एहमियत को समझना चाहिए। कोई भी ऐसा फ़ैसला ख़ुद नहीं लेना चाहिए जिनसे रिश्तों में दरार आती है। आज के दौर में सभी उग्र स्वभाव के हैं। जरा-सी बात पर या रुपये पैसों को लेकर बरसों पुराने रिश्ते को तोड़ देते हैं आज के बच्चे। यह कतई उचित नहीं है। आज के बच्चों को रिश्तों की एहमियत की समझ नहीं है।

बच्चों को लगता है कि आभासी दुनिया में बहुत सारे मित्र हैं तो हमें भला किसकी ज़रूरत पड़ेगी। यह सोच पूर्णतः गलत है। बेशक रिश्तों में कभी-कभी वाद-विवाद या तकरार उत्पन्न हो जाता है पर मुश्किल हालात में हमारे अपने ही हमारा साथ देते हैं। मन से इस भावना का त्याग करना होगा कि रिश्ते ज़िंदगी में मायने नहीं रखते हैं।

धन्यवाद!

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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