संकट की घड़ी में निभाइये साथ !

Topic-रिश्तों की डोर Article-04

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 08 May, 2020 | 1 min read

समय बदलता रहता है। रात कितनी भी घनघोर क्यूं न हो ? कुछ समय के पश्चात सुबह आती ही है। ठीक ऐसा ही कुछ रिश्तों में भी घटित होता है। यदि हमारे रिश्तेदार बुरे दौर से गुजर रहे हैं। तो हमारा फर्ज है कि हम उन्हें उस वक्त संबल प्रदान करें। उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि बुरा वक्त अधिक दिनों तक नहीं रहता है। एक-न-एक दिन बुरा वक्त भी वक्त से अपने कक्ष की ओर वापस लौट जाता है। यकीन मानिए आपके द्वारा संबल प्रदान करने के बाद निश्चित ही उन्हें ऊर्जा मिलेगी।

अपनों की पहचान मुश्किल के वक्त- अपनों की पहचान मुश्किल के वक्त ही होती है। यदि आप संकट की घड़ी में अपने रिश्तेदारों के साथ खड़े रहकर उन्हें साहस प्रदान करते हैं तो रिश्तों में नजदीकियां बढ़ती है। साथ ही रिश्तेदार भी यह महसूस करते हैं कि मुश्किल घड़ी में जिसने हमारा साथ दिया है उसे हम भी हर हालात में साथ देंगे। याद रखिए एक बात हमेशा कि मुश्किल वक्त में ही अपनों की पहचान होती है। अपने वही हैं जो न केवल सुख की घड़ी में अपितु संकट की घड़ी में भी साथ निभाएं।

आर्थिक मदद न सही धैर्य और दिलासा ही सही- आर्थिक स्थिति भले प्रतिकूल हो। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होने की वजह से भले हम अपने सगे-संबंधियों को मुश्किल की घड़ी में मदद न कर सकते हो पर धैर्य और साहस,दिलासा तो दे ही सकते हैं। किसी-न-किसी तरह अपनों की मदद के लिए हाथ आगे अवश्य बढ़ाना चाहिए हमें।

संकट की घड़ी में साहस और धैर्य ही है रामबाण। रिश्तों की डोर मजबूत रहे इसलिए हर हालात में हमें अपनों का साथ देना चाहिए। अहंकार, गलतफहमी, ईर्ष्या, द्वेष को भूल अपनों की मदद करने हेतु हाथ आगे बढ़ाना चाहिए।

धन्यवाद!

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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