किताबें बहुत कुछ देतीं हैं।

जीवनोपयोगी किताब पर लिखित एक काव्य रचना।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 23 Apr, 2020 | 0 mins read


किताबें!

किताबें ज्ञान का भंडार होतीं हैं

किताबों में छीपे रहते हैं अनगिनत अल्फाज,

किताबें अज्ञानता को दूर करतीं हैं, जरा इनसे मित्रता तो करो,

किताबें बहुत कुछ देतीं हैं।

किताबें!

किताबें समुद्र जैसी होतीं हैं।

इनमें समाहित होते हैं बहुमूल्य रत्न,

किताबें दूर कर देतीं हैं समस्त समस्याओं को, जरा इनसे मित्रता तो करो,

किताबें बहुत कुछ देतीं हैं।

किताबें!

किताबें फूलों की बगिया हैं।

इस बगिया का प्रत्येक फूल गुणकारी होता है।

कभी न देंगी दगा, साथ निभाएँगी सदा,जरा इनसे मित्रता तो करो,

किताबें बहुत कुछ देतीं हैं।

किताबें!

किताबें बेजुबान होतीं हैं।

मगर शब्दों की जुबां होतीं हैं।

ये कह जातीं है अकल्पनीय बातें, जरा इनसे मित्रता तो करो,

किताबें बहुत कुछ देतीं हैं।

किताबें!

किताबें माँ जैसी होतीं हैं।

जिस तरह माँ को शब्दों द्वारा वर्णित करना असंभव है,

किताबें संतान के लिए समर्पित होकर ज्ञान का वरदान देतीं हैं, जरा इनसे मित्रता तो करो,

किताबें बहुत कुछ देतीं हैं।

©कुमार संदीप

पूर्णतः मौलिक,स्वरचित

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