वह फरवरी की सुबह

एक सुबह गांव की बहुत कुछ कह जाती है। चलो सुनते हैं, क्या क्या बत लाती है।।

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indu inshail
indu inshail 07 Jun, 2020 | 1 min read
Rural Village Selfhelp Happiness WorldEnvirementDay Selftalk

सुबह सुबह सारा घर का काम निपटा के मैं छत पर आ गयी। कितना सुकून है सूरज की किरणों में। आ...हा.... ह.... मानो प्यार से पूरे तन और मन की सिकाई कर रही है। चिड़ियों की चहचहाहट, कभी इधर से तो कभी उधर से, चारों दिशाओं को पुकार रही है।

हरी - हरी फूलों की बेल देखकर, मन उत्साहित सा हो जाता है और वह पेड़ जो मेरे घर की मुंडेर से लगा हुआ है, उसकी शाखाएं नई नवेली धानी हरे रंग की पत्तियों से भर गयी हैं।मानो वह भी बड़े नाज से, लहरा रहा हो।

बहुत दूर से बच्चे की किलकारी की आवाज, हेन्ड पम्प से पानी को निकालने की आवाज, वो सूप में अनाज पछोरने की आवाज, किसी की अम्मा को पड़ोस के बच्चे के ऊपर चिल्लाने की आवाज, और हांँ सुबह 8:00 बजे भी सूरज और चांद को आकाश में एक साथ देखने का मौका, यह सब बस गांव में ही है।

जी हाँ। ऐसा नजारा आपको बस गांव में ही मिल सकता है। यह मजा और कई गुना तब बढ़ जाता है, जब मैं अपने ही घर में लगे अमरूद के पेड़ से अमरूद तोड़ के, खेत से आई हुई हरी धनिया की चटनी के साथ खुले आसमान के नीचे, इसका लुत्फ उठा के खाऊं।

सच में दोस्तों ...

"बहुत सुकून है, गांव में ।

जैसे शांत नदी के पानी पर,

मदमस्त तैरती नाव में।।"

आज जब 31 साल की उम्र में भी मैंने शहर और गांव दोनों की कार्यशैली और रोज की व्यस्तता को समझ लिया है।फिर भी मुझे गांव पसंद है। 

फिर सोचती हूँ कि क्यों हमें शहर का आकर्षण खींच लेता है। तो बस एक ही बात समझ में आती है जीविका। 

"पता है, जरूरी है

जीविका चलाने के लिए,खर्चों को कमाना।

पर कौन चाहता है, अपने घर से दूर जाना।।"

अगर गांव में मिल जाए, पेट पालने का जरिया

तो नहीं शहर में घूमेगा, कोई मजदूर भैया।

पता है, जरूरी है

जीविका चलाने के लिए,खर्चों को कमाना।

पर कौन चाहता है, अपने घर से दूर जाना।।"

बहुत चिंतन-मनन करने पर, समझ में आता है कि क्या यही कुछ नहीं कर सकते। जीविका चलाने का साधन नहीं ढूंढ सकते। कौशल की कमी है तो जो कौशल मेरे पास है वह भी तो कमाने का जरिया बन सकता है।

पर यह बातें शायद सोचना ही आसान है जब गांव में व्यवसाय करने की बात आती है तो आपके पास बहुत साधनों की कमी पड़ जाती है। इसीलिए तो कहते हैं ..

"गांव की याद आएगी भी तो, कोई नहीं बताएगा

 गांव की याद आएगी भी तो, कोई नहीं बताएगा

 सब कहते हैं यहां कुछ भी करो, 

 कुछ चल नहीं पाएगा।"

दोस्तों आज की कहानी में बस इतना ही।अगर आपके पास कुछ सुझाव हो कि गांव में कैसे लोगों को रोजगार मुहैया करवाया जाए,बिना बहुत सारी लागत के, तो जरूर बताएं।अपने आसपास के लोगों को थोड़ा शिक्षित बनाएं।जब कोई जरूरतमंद दिखें तो, उसकी थोड़ी हौसला अफजाई करें और समस्याओं से लड़ने का रास्ता दिखाएं।

इसी वादे के साथ अब मैं आपसे विदा लेती हूं। जल्दी ही, एक नए किस्से के साथ के साथ आपसे फिर मिलूंगी।आप सब खुश रहें और अपना ढेर सारा ख्याल रखें।


आपकी अपनी ©इंदु इंशैल

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