तुम मिले

इंतजार में शबभर जगा रहा

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 22 Nov, 2020 | 1 min read
Love Romance

पर्दे उठे,    पर्दे गिरे

एकटक निहारता मैं

सांसें बढ़ी ,सांसे थमीं

भीतर से सिहरता मैं


हथेली की लकीरें देखीं

बारबार लगातार मैंने

पलकें उठी नजरे गिरीं

डाले फिर हथियार मैंने


मुस्कुराती नजरों  का

सामना किया न कभी

थर्रायी नजरें जमने  को

बेबश,बस रुक जाए अभी


जुबाँ थमी ,मस्तिष्क मौन

ह्रदय गोते लगा  रहा

तुम मिले हां ! मिले जब भी

मैं शबभर जगा रहा ।


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Dr. Pratik Prabhakar

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