दिल ही जला

दिल ही जला, दीपक न जला

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 29 Sep, 2021 | 1 min read
Tragedy Romance

दिल ही जला ,   दीपक न जला

उगता हुआ   सूरज    भी ढला

वो जो कहते है   चले    आओ

नहीं आती गम भुलाने की कला।


दिल का दिवाला निकला मुरझाई काली

न जाने तू किस विषम मोड़ पर मिली

अंतरात्मा की पुकार      सुनूँ या तुम्हें

मुरझाई कली बता अब    कैसे खिली?


वो जो चाँद चमक था  चंद्रमासी को

चांदिनी छिटकी थी जैसे     दासी हो

ऐसे ही उच्छ्वास की गहराई में जाकर

तुम कहती अविश्वास छोड़ विश्वासी हो।


फूलों को सींचता है जब माली

प्रत्युत्तर देती है हर द्रुम डाली

क्यूँ मैं भी भूलूं  अब भूत को

मनाऊं तेरे संग होली दिवाली।




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प्रतीक


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