वीर सैनिक

कैसे एक सैनिक का पुत्र अपने पिता से प्रेरणा पाता है।

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 20 Oct, 2020 | 1 min read

"माँ ! जल्दी चलो । आज ही पापा से मिलने जाना है" विवेक ने अपनी माँ को आवाज़ लगायी। आज विवेक एम. बी.बी.एस. की पढ़ाई पूरी करने के बाद पहली बार अपने पापा से मिलने जा रहा है। पापा कितने खुश होंगे। उसके पापा सेना में थे और उन्होंने कारगिल युद्ध में देश की तरफ से लड़ाई लड़ी थी।



 जब पुलवामा में आतंकी हमला हुआ था, विवेक बहुत दुःखी था ।और जब उसे मेडिकल कॉलेज के पास के सी. आर.पी.एफ .सेना प्रशिक्षण केंद्र में शोक सभा में वीर शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए बुलाया गया था उसके आँसुओं को रोक पाना नामुमकिन सा हो गया था। विवेक को ऐसा लग रहा था मानो कोई अपना जग छोड़ के चला गया है।अभी विवेक के दिमाग़ में यही सब चल रहा था कि माँ की आवाज़ ने उसका ध्यान खींच लिया।


अच्छा बेटा! वो बेसन के लड्डू रख लो। विवेक को पता है कि पापा को माँ के हाथ के बने बेसन के लड्डू बहुत पसंद थे। विवेक के नानाजी भी साथ में जाने वाले थे। सभी गाड़ी में बैठ गए। 



हर एक दो मिनट पर विवेक माँ के चेहरे को निहार लेता था। माँ गुमसुम सी थी। विवेक को याद हो आता है कि कैसे माँ ने उसे अकेले ही पाला- पोसा बड़ा किया , सारी घर-गृहस्थी संभाली। आज वो जो कुछ भी था अपनी माँ के बदौलत ही था। शायद ही कोई अपनी माँ के ऋण से उऋण हो पाए। 


तभी गाड़ी रुकी। सभी गाड़ी से नीचे उतरे। और सभी चबूतरेकी ओर चल दिये । वहाँ एक आदमक़द प्रतिमा थी..सैनिक की.. विवेक के पापा की। आज विवेक के पापा का जन्मदिन था। विवेक ने प्रतिमा को माला पहनाई और माँ दिया जलाने लगी। दिया जलाते हुए माँ के आँखों से आँसू की बूंदे दिये के तेल में न जाने कब जा मिली। तब नानाजी ने ढाढ़स बढ़ाया।



की ओर चल दिये । वहाँ एक आदमक़द प्रतिमा थी..सैनिक की.. विवेक के पापा की। आज विवेक के पापा का जन्मदिन था।

माँ ने प्रतिमा को तिलक लगाई। विवेक ने प्रतिमा को माला पहनाई और माँ दिया जलाने लगी। दिया जलाते हुए माँ के आँखों से आँसू की बूंदे दिये के तेल में न जाने कब जा मिली। तब नानाजी ने ढाढ़स बढ़ाया।


आरती उतारते हुए विवेक ने प्रण कर लिया था कि जिस तरह से उसके पिताजी ने देश की सेवा करते हुए अमरता को प्राप्त किया ठीक वैसे ही वह सेना में डॉक्टर बनकर देश के सैनिक


ों की सेवा करेगा।

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