लघु कथाएं

लघु कथाएं

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 17 Jun, 2020 | 1 min read

काश मेरे पास जादू की छड़ी होती तो मैं बदल देती उस रिवाज को जो कहता है बेटियां पराई होती है। सदियों से बेटियां ही विदा होती है ससुराल जाती है। अरे! लड़के क्यों नही आ जाते अपने ससुराल में रहने। सारे आदर्श, रिवाज, संस्कार सिर्फ औरतों के लिए ही क्यों.?

अपना घर परिवार माता-पिता, भाई-बहन, या यूं कहो अपनी आधी जिंदगी छोड़ कर वो ही क्यों जाए। अगर कुछ बदलने का मौका मिले तो मैं बदल दूँगी उस समाज को जहाँ नारी को अबला समझा जाता है, उसे पराया कहा जाता है, उसे बोझ कहा जाता है।


कोरोना के चलते सभी को बाहर जाने की मनाही थी। ऐसे में रिया को घर मे बोर लग रहा था। न तो वो बाहर खेलने जा सकती थी और न ही अपने दोस्तो को घर बुला सकती थी। रिया का उतरा चेहरा देखकर माँ बोली चलो आज हम घर-घर खेलते है। माँ-बेटी ने मिलकर कपड़ो का घर बनाया और लाइट्स से उसको सजाया, बाद में माँ ने अपने बचपन की फ़ोटो भी रिया को दिखाई। पापा को भी अब रहा न गया और भी उनमे शामिल हो गए। दिन कैसे निकल गया रिया को पता ही नही चला।

@बबिता कुशवाहा

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