मैं बच्ची बन जाती हूं

मायके से लौटती एक बेटी के मन से निकली आवाज

Originally published in hi
Reactions 1
424
Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 02 Feb, 2021 | 1 min read
Poetry 1000poems

हाँ यू तो हूं माँ मैं भी

पर अपना मातृत्व भूल जाती हूं

पाकर माँ-पापा का प्यार

मैं फिर बच्ची बन जाती हूं।।

हाँ है कई जिम्मेदारियाँ मुझ पर भी

किसी की भाभी, पत्नी और बहू कहलाती हूं

पर जब पाती हूँ मायके में माँ-पापा का दुलार

मैं फिर बच्ची बन जाती हूं।।

सुने पड़े आँगन की बगिया महक जाती हैं

तेरे आते ही घर में रौनक सी आ जाती हैं

सुनकर माँ-पापा की इन बातों को

उनसे लिपट जाती हूं

मैं फिर बच्ची बन जाती हूं।।

मिलते ही कामों से फुर्सत माँ पास मेरे बैठ जाती हैं

रखकर गोद में मेरा सिर उंगलियों से अपनी सहलाती है

नखरे दिखाती मैं हर रोज अपनी फरमाइशें गिनवाती हूँ

हाँ मैं फिर बच्ची बन जाती हूं।।

आज-कल पापा ऑफिस से जल्दी आ जाते है

खाने को रोज ही कुछ न कुछ लाते है

पाकर उनके आने की आहट

दरवाज़े की और दौड़ जाती हूं

हाँ मैं फिर बच्ची बन जाती हूं।।

जल्दी आना फिर से बेटा पापा बार-बार दोहराते है

पलक झपकते ही गिनती के दिन निकल जाते है

बिखरे सामान को समेटती मैं,

उनकी नम आंखें पढ़ जाती हूं

हाँ मैं फिर बच्ची बन जाती हूं।।

बस कुछ दिनों की छुट्टियों में

साल भर की यादों को समेट ले आती हूं

आते ही ससुराल में

मैं फिर भाभी, पत्नी और बहु बन जाती हूं।।

©®बबिता कुशवाहा

1 likes

Published By

Babita Kushwaha

Babitakushwaha

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.