बस एक दिना की मोहलत

मातृभूमि पर शहीद होते वक़्त एक सैनिक की पुकार

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 06 Sep, 2020 | 1 min read
Poetry contest Bundelkhandi Language

मन करत है, तोरे एंगर ठहर जांओ,

तोरी लटन खा अपने हाथन से सहलांओं,

पर माँ इंतजार कर रइ हुईए चौखट पे मोरों,

बस एक दिना की मोहलत और दे जिंदगी

एक आखिरी बेर तनक माँ से मिल आंओं।।


जबसे होश संभालो है, बस तुझ खा ही सवारों है,

मानो मैंने के मोरी पहली मोहब्बत है ते,

पर उ मोहब्बत को का, जो आज भी मोरो इंतजार कर रइ हुईए,

बस एक दिना की मोहलत और दे जिंदगी

एक आखिरी बेर तनक अपनी महबूबा से मिल आंओं।।


मानो मैंने तोरे कोल्ल एहसान है मो पर,

मगर कछु संघर्ष कोनऊ अपने ने भी करें है,

सब्र कर तोरे कर्ज़ भी चुकांहो,

लेकन बस एक दिना की मोहलत और दे जिंदगी,

पेला एक कर्ज़ और उतार आंओं,

एक आखिरी बेर अपने बूढ़े बाप से मिल आंओ।।


फिर आ गओ तो जाबे को नही बोल हो,

एक सैनिक को पुरो फ़र्ज़ निभांहो,

लेकन अबे एक दिना की मोहलत और दे जिंदगी,

एक आखिरी फ़र्ज़ और निभा आंओंं,

अपनी बहन खा डोली में बैठा आंओ।।


फिर जब आंहों सो सारे बंधन तोड़ के आंहों,

माता-पिता और परिवार के पूरे कर्ज़ उतार के आंहों,

अपने देश पे मर मिटबे के लाने आंहों,

बस एक बेर विश्वास कर ए जिंदगी,

बस एक दिना की मोहलत और दे जिंदगी।।


©बबिता कुशवाहा

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित









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Babita Kushwaha

Babitakushwaha

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Savita vishal patel · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    प्यारी रचना दी

  • Jatin pal · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice mam

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank-you everyone 🙏🙏

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