अफसोस

बुन्देलखंडी भाषा (कहानी)

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 11 Jun, 2020 | 0 mins read

मैं पढ़ाई के लाने अपने घर से दूर दूजे शहर में राती हती जब कबहु भी कॉलेज की लंबी छुट्टी पड़त ती मैं अपने घर खा निकल पड़ती। एक बेर गर्मीयन की छूट्टी लगतन ही मैं ट्रेन से घर के लाने निकल पड़ी। रात को सफर हतो सो बोगी के सबरे जने अपने अपने सीट पर चादर ताने सोऊंन लगे। मैंने भी अपनों चदरा बैग से निकालो ओर ओढ़ के पर रइ। तबाई बगल वाले कैबीन में लड़कन की ठहाका की आवाज बेर बेर सुनाई दे जात हती उसे मोरी नींद ठीक से नाइ लग पाउत ती। बे सबरे लड़का जोर जोर से हँसी मजाक कर रये हते। फिर सबरे अंताक्षरी खेलन लगे। मोरे संगे संगे ट्रेन के ओर लोग भी उन लड़कन से परेशान हो रये ते। सबरे यात्री सो नाइ पा रए ते।

12 बजे तक सबरे लड़का ट्रेन में हुडदंग मचाउत रए। और उके बाद वे सब भी सोबन लगे लेकिन जो लो मोरी नींद उड़ गई ती। तबहु ट्रेन के एक बुजुर्ग के खर्राटन कि आवाज से बे फिर हँसन लगे। उनखा अब उन बुजुर्ग के खर्राटन से परेशानी हो रइ ती। इसे बे उनका उल्टो सिधो और अपशब्द बोलन लगें। अब लो बे बुजुर्ग भी नींद से उठ चुके हते लेकिन बेचारे कछु बोल नाइ पाए और ओतई चेमा के रे गए।

जब बे लड़का खुद फालतू को हल्ला करके सबखा परेशान कर रये ते तो कछु नाइ लेकिन अब उन्हें खुद खा दूसरे के खर्राटन से तकलीफ हो राई हती। चार घण्टा से सबकी नींद खराब कर रये हते तो कोनऊ बात नाइ और जब खुद के नींद में तनक खलल पड़ो सो तुरन्त दूसरन को मजाक उड़ान लगे। और जेइ युवा खुद खा देश को भविष्य बताऊँन लगत। अफसोस बाली बात जा है कि ट्रेन में इतने जनन में से कोनऊ ने भी उन लड़कन खा रोकबे के कोशिश नाइ करी परेशान होबे के बाद भी सबरे अपनी अपनी सीट पर चेमाने रये।

जा कहानी एक बेर मैंने कऊ पढ़ी हति उ खा अपनी बुंदेली भाषा मे करबे को प्रयास करो है। कहानी अच्छी लगे तो लाइक जरूर करियो। धन्यवाद







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