◆दरवाजा◆

दरवाजा

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आनंद रॉय
आनंद रॉय 13 Oct, 2020 | 1 min read

कभी सोचा है

एक वीरान घर के बंद दरवाजे

को अगर पेड़ ही रहने दिया जातातो क्या होता?

वह इंसानों के बिना

वीरान घर जैसा तो नही होता।

उस पेड़ पर बसता चिड़ियों का खुशहाल परिवागूँजती नन्हें मेहमानों की किलकारियाँ

जो शायद ही वह पेड़ उस वीरान घर का दरवाजा बनकर सुन पाता।अपने टहनियों को झुकाकर करता पसीनों से

लथपथ किसानों और राहगीरों की मेज़बानी।मुनिया जब सखियों संग सावन के झूले झूलती

तो पेड़ भी मुनिया और उसकी सखियों कीप्यारी हँसी-ठिठोली सुनता।

वह ग्राम पंचायत का हिस्सा होता 

जो देखता ग्रामीण न्यायपालिका का फैसला 

उन फैसलों में इंसानों का छल,कपट,द्वेष,ईष्या दिखता।

जिनके कारण न जाने कितने पेड़ आज वीरान घरों में घुन खाते बंद दरवाज़े बनकर रह गए।।


    ___आनंद रॉय










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