Titleअनोखा रिश्ता

अनोखे रिश्ते

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डाॅ मधु कश्यप
डाॅ मधु कश्यप 10 Jul, 2020 | 1 min read

"पॉपकॉर्न कितने का दिए भाई?"

" पाँच रूपए पैकेट साहब।"

" दो दे दो फिर।"

" अभी दिया साहब।"

" कुछ और भी करते हो या किसी से गुजारा हो जाता है ?"

"इसी से हो जाता है साहब और कुछ कर भी नहीं सकता।"

" क्यों?"

" इतनी ठंड में इतने पैसे भी नहीं है कि मैं गर्म स्वेटर लूँ । चौबीसों घंटे आग के साथ रहता हूँ तो ठंड का एहसास ही नहीं होता ।"

"मतलब ?मैं नहीं समझा ।"

"अरे साहब !इन मकई के दानों को जब कड़ाही में भूनकर पाॅपकार्न बनाता हूँ तो दिन भर यही रहूँगा ना ।इस तरह मैं इन दानों को गर्म कर कमाता हूँ और यह आग मुझे गर्म कर स्वेटर की जरूरत महसूस नहीं होने देती।" मैं अवाक सा खड़ा उन दोनों का रिश्ता देखकर दंग रह गया।

डाॅ मधु कश्यप ,

मौलिक एवं स्वरचित रचना

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