वक्त की स्याही - कुछ अधूरी बातें।

वक्त तो बीतता जाता है, वो कभी ठहरता नहीं ।लेकिन फिर भी कुछ अधूरी ख्वाहिश होती हैं जो जहन में आती रहती हैं।

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Vinita Tomar
Vinita Tomar 21 Feb, 2022 | 1 min read

वक्त की स्याही भी गजब ढहाती है

कुछ बातें अमिट छप जाती हैं।

खोलती हूं पन्ना बीते सालों का,

अधूरी ख्वाहिशें भी उमड़ आती हैं।

वक्त की स्याही भी गजब ढहाती है।


बावरा मन था बड़ा,

 सपनों का आंगन भी था बड़ा।

कभी उड़ने की चाहत थी,

कभी शहादत का अरमान था।

बातें तो बड़ी थी , उम्र नाजुक थी।

बस रह रह कर वो ही किताब खुल जाती है

वक्त की स्याही भी गजब ढहाती है।


किस्मत भी जानें कितने रंग दिखाती है

कभी रंक को राजा, तो कभी राजा को रंक बनाती है।

समय के साथ कितना कुछ बदल जाता है

सपनों का रूप भी अलग नजर आता है।

गरम रोटी भी अब नसीब में कहां आती है

वक्त की स्याही भी गजब ढहाती है।



लेखिका : विनीता सिंह तोमर


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Vinita Tomar

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