जंजीरों मे ना जकड़ूँगी

अपनी कविता के माध्यम से नारी को निर्जीव वस्तु समझने वालों के खिलाफ जंग#poetry

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Varsha Sharma
Varsha Sharma 09 Sep, 2020 | 1 min read

शीर्षक, जंजीरों में ना जकडूंगी


जाओ निर्भया जाओ प्रियंका! !!!!!यह जगह तुम्हारे रहने लायक नहीं |

 हम तुम्हें पढ़ा सकते हैं हम तुम्हे बड़ा बना सकते हैं |लेकिन तुम्हें इन जल्लादों से नहीं बचा सकते |

''क्या बीती होगी तुम पर ?इसका अंदाजा लगाते भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं|

 पशुओं का तो तुमने इलाज कर दिया लेकिन दो टांगों पर जो  पिशाच फिर रहे हैं उनसे ना बच पाई|

 सुनो देश की माताओं हर लड़की को बंदूक दिला दो और उसे चलाना सिखा दो|   

या फिर रेपिस्ट को फांसी का तख्ता दिखला दो | या फिर मुझे एक लोहे का कट पुतला बनवा दो!!!!!!क्या जंजीरों में बंधे रहना ही मेरी नियति थी???? मैंने उड़ने की सोची तो कर दी दुर्गति!!!!!! 

जब तक नारी को धरा पर सम्मान दिला ना पाओगे .... 

भारत को फिर से सोने की चिड़िया ना बना पाओगे

 मैं अगर उग्र हुई तो काली बन जाऊंगी तुम्हारी छाती पर पैर रखकर चंडी बन जाऊंगी 

फिर याद दिलाना मुझे दलीलें उन बेडी जंजीरों की!!!!! 

 जो बचपन से तुम ने पहनाई और मैं बिचारी विवश कुछ करना पाई... ....

 वर्षा शर्मा दिल्ली

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Varsha Sharma

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