सूना आंगन
हम आंगन को तरसते हैं
वहां सूना आंगन है
कितना कुछ पाया है
पर बहुत गंवाया है
आंगन में खड़ा है बरगद
उस पर झूले की पींगे
ओ सखियों का खिलखिलाना याद बहुत आता है
दादी , ताई, चाची का मिलकर त्योहार मनाना याद आता है
घुटनों पर चलते थे
वहीं पर पढ़ते थे और सिलाई कढ़ाई बुनाई जाने क्या-क्या करते थे | उस आंगन से अब भी रिश्ता पुराना है|
अब तो कुछ भी सीखने को कोचीग को जाना है
कितना कुछ पाया है
पर बहुत गंवाया है
वर्षा शर्मा
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