खुदकुशी

इमोशनल

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Varsha Sharma
Varsha Sharma 25 Apr, 2020 | 1 min read

खूदकुशी

बचपन से ही लाड प्यार से पला है..साहिल | पढ़ने में भी होशियार था कभी असफलता का मुंह नहीं देखा |लेकिन अब जिंदगी के धरातल पर जब असफलता मिल रही है तो शायद वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा | छोटी नौकरी को समझता है कि क्या करूं |अच्छे काम के इंतजार में हैं |अरे !!!नौकरी भी नहीं लगी काम का कब तक इंतजार करूं| मैं तो खुद ही परेशान हूं| मां- बाप पर भी एक बोझ हूं !यही सोचते-सोचते साहिल समुद्र के किनारे आ गया| अपने , संघर्ष के दिनों से बहुत परेशान हो गया है| इतना परेशान कि कभी-कभी तो उसका मन खुदकुशी करने को होने लगता है| युवा पीढ़ी के साथ ज्यादातर ऐसा होने लगा है कि बहुत जल्दी निराशा में घिर जाते है| एक बच्चा उसको दिखाई पड़ता है जो गुब्बारे बेच रहा है वह कहता है| बाबूजी एक गुब्बारा ले लो मेरे घर का खर्चा हो जाएगा .....मतलब इसके घर का खर्च एक गुब्बारे से चल जाएगा• क्या इसकी जरूरत इतनी कम है ????बोला कितने पैसे का दोगे....₹10 का बाबूजी ...₹10 में तेरा घर चल जाएगा ????यही सोचकर अगर बाबूजी ₹10 का एक भी नहीं बेचूँगा तो कैसे चलेगा ?₹10 में तो नहीं लेकिन हां 10 बार बेच दूंगा तो शाम तक ₹100 इकट्ठे हो जाएंगे |पढ़ने क्यों नहीं जाता पढ़ने जाऊंगा तो छोटे भाई बहन हैं उनका पेट कैसे भरेंगे |पिता तो शराबी थे बचपन में छोड़ कर चले गए मां घरों में काम करती है |लेकिन आजकल बीमार है पढ़ाई तो बाद में भी कर लूंगा| बाबू जी अभी थोड़ा जिम्मेदारी से घिरा हूं ......छोटे से जिम्मेदार बच्चे के मुंह से ऐसी बातें सुनकर साहिल ने खुद की तरफ देखा मैं तो उसके शराबी पिता से भी गया गुजरा हूँ | मां बाप ने पढ़ाया लिखाया और मैं मरने की सोचता हूं |आज घर जाते हुए बहुत आत्मविश्वास से भरा है कोई भी छोटा काम कर लूंगा| लेकिन मरने का कभी ध्यान नहीं लगाऊंगा| साहिल को एक किनारा मिल गया| घर आकर मां के गले लग गया|

, वर्षा शर्मा दिल्ली

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