असर संस्कारों का

जैसा बोओगे वैसा काटोगे

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 17 Jan, 2021 | 1 min read

नीलेश को चिंतामग्न देखकर स्मिता जी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा कि किस चिंता में डूबा है। नीलेश पहले तो "ऐसा कुछ नहीं है" कहकर टाल गया पर स्मिता जी के बार-बार आग्रह करने पर उसने अपना दिल खोल कर रख दिया। वह बोला मैं आजकल अपने विभाग की परेशानी से परेशान हूं।

 ऐसा क्या हुआ वहां स्मिता बोली

 बस यह मत पूछो विभाग वाले मेरे कंधे पर बंदूक रखकर गोली चलाना चाहते हैं। सीधे शब्दों में कहूं तो वह मुझे गलत काम करने के लिए कह रहे हैं। फायदा तो सब उठायेंगे पर फंसूगा मैं ही। और अगर मैं उनकी बात नहीं मानता हूं तो उच्च अधिकारी मुझे फर्ज़ी मामले में फंसाकर डिमोशन की धमकी दे रहे हैं ,पर गलत काम करने को मेरा मन गवाही नहीं देता। मैंने बचपन से ही आपसे और पापा से ईमानदारी और खुद्दारी से जीवन जीने का पाठ पढ़ा है। मुझे याद है पापा जिस विभाग में थे वहां रिश्वत का बोलबाला था पर पापा ने ना कभी खुद ली ना लेने दी और इस बात का खामियाज़ा उन्हें ट्रांसफर की कीमत देकर चुकाना पड़ता था पर उन्होंने अपने उसूलों से कभी सौदा नहीं किया। वो कहते थे कि हराम का पैसा कभी नहीं फलता। आपने भी घर में चाहे कितनी तंगी रही पर पापा को रिश्वत लेने के लिए विवश नहीं किया ना ही कभी किसी के आगे हाथ पसारे बल्कि आपने अपनी पाककला का सदुपयोग करके घर में आर्थिक योगदान भी दिया। कभी किटी पार्टी ,बर्थडे पार्टी के आर्डर लिया करती थीं तो कभी खाली समय में जवें, पापड़, बड़ियां, मंगोड़ी बनाकर उन्हें बेचकर पैसा कमाती थीं। नीलेश बोला मैं जिस परिवेश में पला बढ़ा हूं, जो संस्कार मुझे मिले हैं वो मुझे अब इस नौकरी को अलविदा कहने को कह रहे हैं। मैं अपने ज़मीर को मारकर कोई काम नहीं कर सकता ।पर जब तक दूसरी नौकरी नहीं मिलती तब तक कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा,यही सोचकर परेशान हूं। नीलेश के पापा भी ना जाने कब से उसकी बातें सुन रहे थे। वो अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए बोले हमने जैसा बीज बोया था वैसी ही फसल तैयार हुई है और मुझे अपने बेटे पर गर्व है।वो सौरभ से बोले कठिनाइयों से तो हम मिलकर निबट लेंगे पर तुम्हारे दिल का चैन और सुकून नहीं खोना चाहिए।वैसे तुम जैसे टेलेंटेड लड़के को नौकरी की कोई कमी नहीं है। मैं तुम्हारे फैसले से इत्तेफाक रखता हूं ।अपने फैसले में अपने पापा की मुहर लगने पर नीलेश की बांछें खिल गईं। अब वह अपने को बहुत हल्का महसूस कर रहा था।


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर ‌

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