हां, मैं दर्द बेचती हूं ,। हां मैं दर्द खरीदती हूं

हां मैं दर्द बेचती हूं हां मैं दर्द खरीदती हूं मैं दर्द का सौदा करती हूं

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Tulika Das
Tulika Das 01 Sep, 2020 | 1 min read
#the poetry blast

क्या बिकता नहीं बाजारों में ,

कौन सा खरीदार नहीं चौराहों पे ,

लेकर आओ तो सही दर्द यहां ,

दर्द का भी होता है व्यापार यहां ।

हां , मैं दर्द बेचती हूं ,

हां, मैं दर्द खरीदती हूं ,

मैं दर्द का सौदा करती हूं ।

प्यासे होंठों पे मैं बांध बनाती हूं ,

अंगुलियों के पोरों पर मैं सागर थाम लेती हूं ,

प्यालियों में भर कर घूंट घूंट

मैं पीती - पिलाती हूं ,

हां , मैं दर्द बेचती हूं ।

खुले ज़ख्मों पर मैं मरहम सजाती हूं ,

भावों को शब्दों से तौलती हूं ,

जज्बातों से कीमत चुकाती हूं ,

अहसासो का मोल लगाती हूं ,

हां मैं दर्द खरीदती हूं ।

खारे दरिया में भी डूबती-उतरती हूं ,

सपनों के टूटे कांच पलकों से चुन कर लाती हूं ,

अपने अधूरेपन को मैं खालीपन से भरती हूं ,

कुछ अधूरे लम्हों से मैं दर्द उधार लेती हूं ।

रतजगों से नींद की उधारी चुकाती हूं ,

रोज यादों के दिये जलाती हूं ,

बाती की जगह खुद जलती हूं ,

मैं दर्द का मोल यूं चुकाती हूं ।

कुछ अकेली शामों से तन्हाइयों का सौदा करती हूं ,

टूटे सिक्के किस्सों के मैं तौल पर चढ़ाती हूं ,

कुछ पूराने बेच कर नया दर्द मैं खरीदती हूं ,

हां , मैं दर्द का सौदा करती हूं ।

रचना - तुलिका दास ।

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