हां , मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए।

हम भी तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए। कुछ तुम कहो , कुछ मैं कहूं , कुछ तुम सूनो कुछ मैं सुनु , थोड़ी शिकायतें तुम्हारी थोड़ी शिकायतें मेरी ।

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Tulika Das
Tulika Das 23 Jan, 2021 | 1 min read
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कुछ तुम कहो ,

कुछ मैं कहूं ,

कुछ तुम सुनो ,

कुछ मैं सुनूं ,

थोड़ी शिकायतें तुम्हारी ,

थोड़ी शिकायतें मेरी ,

सुलझाएं उलझनें हमारी ,

ऐसा कोना चाहिए ,

हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।

एक चाय की प्याली तुम्हारी ,

एक चाय की प्याली मेरी ,

उठती तलब नजदीकियों की ,

उठता धुंआ अहसासो का ,

अहसासो में भींग जाए मन

ऐसा कोना चाहिए ,

हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।

कुछ मेरे हाथों से छूटा ,

कुछ तुम्हारे हाथों से फिसला ,

कुछ यहां बिखरा ,

कुछ वहां बिखरा ,

समेट लूं जहां

वो पल सारे ,

ऐसा कोना चाहिए ,

हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।

कुछ करवटें बदलती रातें ,

कुछ रुठी हुई नींदें ,

थोड़ी मनाती हुई सुबह ,

थोड़ी थकी हुई दोपहरी ‌,

थोड़ी कतरा कर निकलती धूप ,

पिघलती शामों में पड़ती रहे सलवटें ,

ऐसा कोना चाहिए ,

हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।

हो जहां झीना सा पर्दा ,

कुछ दिखे , कुछ रहे धुंधला ,

कुछ दबी दबी सी हसरतें ,

कुछ जागते सपने ,

हो हाथों की नर्मी ,

बढ़ती रहे सांसों की गर्मी ,

ऐसा कोना चाहिए

हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।

थोड़ा तुम तुम्हारे पास रहे ,

थोड़ा मैं मेरे साथ रहे ,।

बाकी मैं और तुम हम बन जाए

ऐसा कोना चाहिए ,

हां मुझे तुम्हारे घर में हमारा एक कोना चाहिए ।

#1000poem

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Tulika Das

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