प्राण वायु - आक्सीजन

सबक खूब सिखाया प्रकृति ने हमें , देती रही वह मुफ्त ऑक्सीजन, कदर नहीं की हमने

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Tulika Das
Tulika Das 06 May, 2021 | 1 min read

सबक खूब सिखाया प्रकृति ने हमें

देती रही वह मुफ्त ऑक्सीजन कदर नहीं की हमने

प्राण वायु पौधे हमें देते रहें ,

पर प्राण पौधों के ही हमने छीन लिए।

छोड़कर प्रकृति की गोद ,

ईटों के जंगल में हम रहने लगे

हर सुख हर सुविधा है घर में ,

चीजें भरी पड़ी है घर में

पर जगह नहीं एक पौधे के लिए

कभी बारिश, कभी धूप ,

कभी जगह की कमी का रोना रोते रहे

झूठे वो आंसू , आज सच में है रुला रहे ।


कभी धर्म के नाम पर ,

कभी बेटों की चाह में आबादी हम बढ़ाते रहे

देकर जरूरतों का नाम पेड़ हम काटते रहे

दर्द वो पेड़ अपना कह सकते नहीं ,

इसलिए उनके दर्द को समझने की जरूरत नहीं

निष्ठुरता हमारी , हम तक लौट कर आई है ,

तभी तो सांस सांस पर बन आई है ,

हैं अब भी समय ,

संभल जाओ ! ,

कंक्रीट के जंगल में पौधे फिर लगाओ

बहने दो प्राण वायु आक्सीजन को

,लौटा लाओ रुठी मां प्रकृति को ।


रचना - तुलिका दास

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