Broken but beautifully manned ( वो और में )

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Shah  طالب  अहमद
Shah طالب अहमद 08 Jun, 2021 | 1 min read
mistake Poetry Respect

दर्मियां ए गुफ्तगू में अब वो बात नहीं है।

वो मेरी आज भी है, मगर मेरे साथ नहीं है।


निहारता रहता हूं चांद को मगर अब चांदनी में वो बात नहीं है।

छत मेरी तन्हा आज भी है , मगर कोई आहट कोई बात नहीं है।


एक अज़ो क्या टूटी अब उसमे वो जज़्बात नहीं है।

मेरे लब पर हँसी खुद के लिये मेरा बदन कोई ज़िंदा लाश नहीं है।


देख ले मुझे करीब से कोई घुटन , पश्चाताप नहीं है।

तेरे बाद भी सब मेरे ,

कामयाबी भी,

कैसे कहूं जिंदगी आबाद नही है।


तेरी खुशी पर कुर्बान हुए मगर तू अब भी आजाद नहीं है।

मेरी महफ़िल का शोर बताता है, मेरी ख़ामोशी भी बर्बाद नहीं है।


तेरा ज़िक्र आता है कभी कभी मगर अब तू ख़ास नहीं है।

तेरी रकीब मेरे करीब और भी है, पर सुना है तुम्हारा अब भी साज़ नहीं है।


तुम्हारा पछताना लाज़मी है , महज कोई इत्तेफ़ाक नहीं है।

अब मैं मेरा हूं मेरी अज़ो से खेलना मज़ाक नहीं है।



दर्मियां ए गुफ्तगू में अब वो बात नहीं है।


दर्मियां : Between.

अज़ो : Body part.


NAME : शाह طالب Ahmed

INSTA : ShahTalibAhmed

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Shah طالب अहमद

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