दर्द तन्हाई का हमसे जीता - अंतिम भाग

क्या आज के युग में भी प्रेम का रूप इतना पवित्र हो सकता है |

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 11 Oct, 2021 | 1 min read

लाखों बार मना करने के बावजूद भी आज मयंक मेरे दरवाजे पर खड़ा था, जाने क्यों मुझे अच्छा नहीं लग रहा था शिष्टाचारवश न उसे अंदर बुलाने से मना कर पा रही थी न ही मेहमाननवाजी की औपचारिकता निभा पा रही थी, लबों से शब्द आज कहीं गुम से थे और आँखे बेतहाशा सवालों के बादलों से घिर बरसने को बेताब, "उफ्फ ये अनचाहे पल कभी कभी जिन्दगी में क्यों आ जाते हैं, जो पूरी जिन्दगी को किसी अनकहे तड़प में बांध देते हैं |

अंदर बुलाने का इरादा नहीं है क्या मैडम? इतनी दूर से मिलने आया हूँ तुमसे, हाँ आओ न, आदित्य को कॉल कर देती हूँ पहले, चाय के कप टेबल पर रखते हुए शुरू हुआ बचपन की यादों का सिलसिला हँसते - हँसाते, कभी आँखें नम होते शाम कब बीत चली पता ही नहीं चला, आदित्य भी घर आ चुके थे, और उसे अपने ही घर रुकने का निमंत्रण दे डाला, मैं बहुत असमंजस में थी नहीं रहना चाहती थी यूँ अकेले घर में किसी के साथ, माना दोस्त है पर है तो पुरुष

पर मना नहीं कर पायी, अगले दिन फिर लंच के बाद हम बचपन की तरह लूडो खेल रहे थे कि अचानक वो मुझसे पूछ बैठा सुनो चाँद कभी जमीन पर किसी के हाथ में आ सकता है, मैं हैरानी से उसे देखने लगी मतलब, जानता हूँ तुम डरी हुई हो पर मेरे लिए तुम वो चाँद हो जिसकी दिल इबादत करता है, मिलना चाहता था बस एक बार की बचपन से आँखों में बसी तस्वीर को बस एक बार रूबरू देख लूँ, मैंने बात घुमाने की कोशिश की कुछ भी बोले जा रहे हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, समझाता हूँ मैं हर रिश्ते का एक नाम होता है पर कुछ अनकहे रिश्ते भी होते हैं जो दुनिया को समझ नहीं आते पर ईश्वर की नजर में पूरी तरह पवित्र होते हैं, और इस रिश्ते का तन से या एक दूसरे की जरूरतों से कुछ लेना देना नहीं होता, बस आत्मा से कब जुड़ जाते हैं पता ही नहीं चलता और सारे रिश्ते तो सिर्फ जिन्दगी भर चलते हैं पर ये रिश्ते जिन्दगी के बाद भी निभते हैं मैं बेसुध सी होती जा रही थी क्योंकि नहीं सुनना चाहती थी ये सब, नहीं जानना चाहती थी कुछ अनकहे रिश्तों की अहमियत, आँखे अब सुर्ख होने लगी थी मेरी और उसने धीरे से मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा अच्छा अब चलता हूँ, आदित्य आए तो उन्हें बाय बोल देना और इतना सम्मान देने के लिए शुक्रिया भी|


थोड़ी देर बाद घर में सब कुछ नॉर्मल था, मयंक जा चुका था, आदित्य आ चुके थे, पर दिल के अंदर कुछ हलचल मची हुई थी कि जिस पवित्र रिश्ते की अग्नि तुम दहका के गए, उस अग्नि में मोम की तरह जलते तो तुम रहोगे, पर ताउम्र शायद पिघलती मैं रहूँगी |


और मोबाइल पे मैसेज फ्लैश हो रहा था, रजनीगंधा के फूल के लिए " विथ यू, फॉर यू ऑलवेज, जिन्दगी के साथ भी, जिन्दगी के बाद भी"

समाप्त 

सुरभि शर्मा 


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