बचपन की जन्माष्टमी

बचपन बीत गया पर यादें आज भी साथ हैं |

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 19 Aug, 2022 | 1 min read

*बचपन की जन्माष्टमी*


संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी खूबी हर त्यौहार में दीवाली जैसी रौनक, ऊपर से अगर घर में दादी का साथ हो तो हर त्यौहार की छटा ही निराली उन त्योहारों में एक त्योहार जन्माष्टमी जिसमें दादी जी रात के 12 बजे अपने ठाकुर जी का जन्म कराती |

बड़ा उत्साह रहता इस दिन हम बच्चों में सब जल्दी उठकर नहा लेते और फिर तैयारी शुरू होती कान्हा जी का बर्थडे मनाने की, जिसकी शुरुआत पूजाघर की सजावट से शुरू की जाती, बच्चों को खिलौने खरीदने के लिए पैसे दिए जाते और हम उछलते कूदते टीम बना निकल पड़ते बाजार खिलौने लेकर आते तब तक मिट्टी के पहाड़ बन चुके होते और उससे रास्ता निकाला जाता यमुना नदी का, पहाड़ और नदी पे सब खिलौने सजा दिए जाते, ऐसे तो ठाकुर जी का झुला था मंदिर में पर हमारी जिद पर हमें साड़ी के झूले बनाने की भी इजाजत मिल जाती जिस पर रात के 12 बजे से पहले बैठने की मनाही रहती, ऐसे तो घर की सब स्त्रियों के व्रत रहते पर घर पकवान की खुशबू से महकता रहता और हमारा बालमन ये सोचता कृष्ण जी इतना लेट क्यों पैदा हुए,! साज सजावट करने के बाद जिसमें विचार न मिलने पर थोड़े झगड़े भी होते पर सज्जा पूरी होते ही अपनी मेहनत देख यूँ खुश होते जैसे कितना बड़ा खजाना मिल गया हो हाँ स्मार्टफोन का ज़माना नहीं था तो अपनी इस निस्वार्थ मेहनत की यादें संजो नहीं पाते हम, अब बच्चों को भी तो रात 12 बजे तक जगाए रखना है तो दादी रखवा देती प्रतियोगिता हममें गीत नृत्य की, और बचपन में मैं इन दोनों ही कला की दीवानी गाना आए न आए पर गाती जरूर थी ठीक वैसा ही कुछ नृत्य का भी हाल था, पर हमारे समय में एक अच्छी बात ये थी कि बचपन में लोग बचपना ही देखते थे, हुनर नहीं |स्कूल में सीखा हुआ गीत सारे बच्चे जब मटकते मटकते गाते तब एक अलग ही समा बंध जाता 


दही बेचन को राधा चली

कन्हैया जी को अच्छी लगी

राधा जी के हाथों में

हरी हरी चूडिय़ां

और दादी हम पर निछावर कर हमें ही पैसे पकडा देती, ऐसे ही मस्ती में कब रात के 12 बज जाते पता ही नहीं चलता और कृष्ण जी का जन्म हो जाता बारी बारी सब झुला झुलाते आरती गायी जाती और फिर बांटते प्रसाद धनिया पंजीरी, नारियल लड्डू, सिंघाडे का हलवा और भी बहुत कुछ बहुत व्यंजनों के तो अब नाम भी याद नहीं रहे, न अब दादी रही, न संयुक्त परिवार और न ही जन्माष्टमी की वो रौनक, पूजा अब भी होती है, प्रसाद अब भी वही रहता है, पर दादी के जाने के बाद कान्हा जी के आगमन के लिए जो सजावट होती थी वो खो गई हम बड़े हो गए हमारी अपनी दुनिया हो गई, पर अपनी व्यस्त दुनिया में भी हमारा बचपन हर तीज त्योहार पर हमारे सामने यूँ ही आ कर खड़ा हो जाता है |


धन्यवाद 

सुरभि शर्मा

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