प्रकृत्ति और मानव

प्रकृति के साथ संघर्ष या फिर सामंजस्य

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 11 Aug, 2022 | 1 min read

प्रकृति क्या है? 

पेड़ - पौधे, जमीन, आकाश, नदी, सागर, पर्वत- पहाड़ मैदान इनमे रहने वाले जीव जंतु का सम्मिश्रण |

और मानव क्या है? इस प्रकृति के अंतर्गत पाए जाने वाले हर जीवो में सर्वश्रेष्ठ जीव | क्या उसकी इसी श्रेष्ठ प्रवृत्ति ने प्रकृति के साथ सामंजस्य करने के स्थान पर उसके साथ संघर्ष व्युत्पन्न कर दिया |


बाकी के जीव - जंतुओं को प्रजनन, भूख - प्यास, निद्रा - जागरण दैनिक निवृत्ति की प्रवृत्ति तो मनुष्य के समान दी | पर मनुष्यों को एक अनोखी शक्ति मिली आविष्कार करने की और इन सब प्राकृतिक क्रियाओं के अतिरिक्त भौतिक सुख - सुविधाओं को जुटा लेने की |


उसे नग्न रहना पसन्द नहीं आया पहले पत्तों और चर्म का आवरण चुना फिर वस्त्र तक पहुँच गए |उसने अपनी स्वाद ग्रंथियों की संतुष्टि के लिए कच्चे भोजन की जगह पका भोजन खाना सीख लिया पशुओं से अपने जीवन रक्षा के लिए औजार बनाना सीख लिया ||कंदराओं में रहते - रहते ईट पत्थर से घर बनाना सीख लिया और इस सीखने और उत्पादन की प्रक्रिया में जाने - अनजाने ही उसने प्रकृति का विनाश करना भी सीख लिया पर जो कर रहे हैं उसके फल खुद भी भोग रहे हैं |


³*अनाज को बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया अनाज बचे पर उसने मनुष्य के शरीर पर भी हानिकारक प्रभाव डाले |

*

बिजली के लिए पानी का दोहन किया, नदी - नालों में उद्योगों और घर की गन्दगी बहाई परिणाम प्रकृति प्रदत पानी की कीमत भरनी पड़ रही है |


*पहले औजारों का निर्माण जानवरों से अपनी सुरक्षा के लिए किया गया अब आपस में एक दूसरे को खत्म करने के लिए उपयोग किए जाने लगे हैं |


*जंगलों को काटते गए अट्टालिका बनाते गए अब धीरे - धीरे शुद्ध हवा, नियमित बारिश को तरस रहे हैं |


भूस्खलन,अत्यधिक गर्मी, अत्यधिक ठंड, भूकम्प, बाढ़, *अनावृष्टि, अतिवृष्टि, महामारी एक तरह से मानव जो प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहे हैं उसके ही परिणाम तो हैं |


1958 में चाइना ने ये सोचकर kill sparrow नामक एक अभियान चलाया कि गौरैया फसलों को खा जाती हैं लाखों गौरैया को मारा गया परिणाम इसके बाद 3- 4 साल चीन में लोग भूखों मरे क्योंकि गौरैया सिर्फ फ़सल नहीं बल्कि उनको नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को भी खाती थी जब गौरैया वहाँ नहीं रही तो सारी फ़सल को कीड़ों ने बर्बाद कर दिया |


हमारी प्रकृति की सरंचना ही कुछ इस तरह की है कि सब कुछ एक दूसरे पर निर्भर है प्रकृति पर हमारा पोषण निर्भर है पर प्रकृति का सरंक्षण हम पर निर्भर है अगर हम उसके संरक्षण में सक्षम नहीं हो पाएंगे तो जरा सोचिए स्वस्थ पोषण कहाँ से पाएंगे?


"कभी कहीं कोई एक कहानी पढ़ी थी कि किसी जंगल में जानवर भूख से इतने बेहाल हो गए कि एक दूसरे को ही खाने लगे |" 


जिस तरह जल का स्तर जितनी तेजी से घट रहा है क्या करेंगे हम अगर ये धरती जलविहीन हो गयी क्या करेंगे जब सारी हरियाली चमचमाते संगमरमर में तब्दील हो जाएगी पर इन सब सुख सुविधाओं के बीच खाएंगे क्या?क्या हम एक दूसरे के  रक्त पिपासु हो जाएंगे अपनी क्षुधा पूर्ति के लिए |


जो प्रकृति हमारी जीवनदायिनी है हर क्षेत्र में हमारी शिक्षक है जिसका कण - कण हमारे लिए पूजनीय है उसकी ये स्थिति हम कैसे कर सकते हैं? 



सोचिए हम किस तरह से विकास की आड़ में अपने विनाश की ओर बढ़ रहे हैं | थोड़ा थमिये और विचार कीजिए कि हम एक दूसरे का विनाश कर के आगे बढ़ेंगे तो क्या हश्र हो सकता है हमारा इसलिए हमें एक दूसरे का साथ देकर और सामंजस्य बैठा कर आगे बढ़ना चाहिए |


"प्राकृतिक संसाधनों को बचाईये

पेड़ - पौधे लगाईए

अपनी ख्वाहिशों को थोड़ा घटाईए

प्रकृति से प्रेम कीजिए. उसे फिर से 

पुष्पित - पल्लवित बनाईए|


सुरभि शर्मा 


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  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    संदेशप्रद

  • Surabhi sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया संदीप

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