गुनगुनाती गजल

हो रहा हो जब हर लम्हे इम्तिहान सब्र का मेरे, तो कहो क्या तुम मेरे लिए दुआओं का माहताब बनोगे |

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 11 Oct, 2021 | 1 min read

हाँ, मैं इक सवाल हूँ, तो क्या फिर तुम मेरा जवाब बनोगे

मैं लिखूँगी फलसफे जिंदगी के, क्या तुम मेरी किताब बनोगे |


आँखों में जो सजा के रखूँ तुम्हें काजल की तरह

तो क्या फिर तुम मेरे हर अश्क का हिसाब बनोगे |


बुझने लगे जब सारी हसरतें परेशानियों के अंधेरे तले 

तो क्या फिर तुम मेरी उम्मीदों का चमकता आफताब बनोगे |



जब रिस रहे हो जख्म कुछ यादों के कड़कती धूप में 

तो क्या फिर तुम बारिश से छनकता मेरा रूबाब बनोगे |


जब हर लम्हे हो रहा हो इम्तिहान सब्र का मेरे 

तो क्या फिर तुम मेरे लिए दुआओं का माहताब बनोगे |


जो दहक जाऊँ कभी अंगारों की तरह हो गम ज़दा

तो कहो क्या फिर तुम मेरा इन्कलाब बनोगे |


गुमशुदा जो हो जाऊँ कभी हो हकीकत से रूबरू 

तो क्या तुम दिल में छुपा मेरा हर मुक्कमल ख्वाब बनोगे |


"जिंदगी" जो न उतर पायी तू खरी रदीफ़, काफिया पैमानों पे 

तो भी क्या तुम मेरी गुनगुनाती गजल लाजवाब बनोगे |




सुरभि शर्मा 







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