अफसोस

ये एक फ्यूचर फिक्शन कहानी है.. (2080 और हम) इसका कालखंड वो है जो अभी किसी ने भी नहीं देखा और जिंदगी जिस तरफ ले जा रही है... उसके अनुसार कल्पना की जाएं तो, ये अतिशयोक्ति भी नहीं.... पढिए..!

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 18 Dec, 2020 | 1 min read
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देखिए ना..!

कितना जूझ रही है हमारी बेटी. .. दो बूंद पानी के लिए, इसको जो बोटल मिली थी, दिन भर में पीने के पानी की, वो खत्म हो गयी है ,अब उसको कल ही पानी मिलेगा, कल सुबह पांच बजे,सरकारी गाडी आयेगी,घर के नल में जो खारा पानी आता है, इस वक्त तो वो भी नहीं है,और देखो उसको कितनी खांसी आ रही है..!

हां, देख तो रहा हूं, लेकिन...

लेकिन क्या..! हम मदद नही कर सकते कुछ..!

मैं उसको कोई ओर उपाय बताऊं कि... "

कैसे बताओगी..?

तुम भूल क्यों जाती हो कि तुम अब वहां नहीं हो, अब तुम्हारे बच्चे तुम्हें देख सुन नही सकते, "भाग्यवान..."

ये 2080 है...! हमें दस साल हो गये वो दुनियां छोडे.. अब हम किधर के भी नहीं हैं, ना उधर के, ना इधर के, पता नहीं क्यों ये प्राण हवा में तैर रहे हैं.?

कोई गति भी नहीं.. देखो खुद को, क्या कोई आकार है.. तुम्हारा.. "

हां... नही है, कुछ भी अपने हाथ में, लेकिन जब बच्चों को ऐसे हवा पानी के लिए जूझते देखती हूं तो.. "

कभी उनके सुंदर मुस्कुराते चेहरे भी नही दिखते, हर पल तो मास्क लगा रहता है..!

कलेजा मुंह को आता है मेरा तो..!

हम्म.. लेकिन ये कंडीशन केवल तुम्हारे बच्चों के साथ ही नहीं है,पडोस में देख लो..!

झांक लो.. जहां चाहो, तुम तो झांक सकती हो, हर प्राणी त्रस्त है धरती पर..!

लेकिन कुछ होता क्यों नही, याद है.. हम लोगो का बचपन कैसे बेफिक्री से धूल मिट्टी में खेलते रहते थे.. बुखार.. खांसी भी नही होती थी कभी ..!

हां, याद है... कि ये सब हमारा ही किया धरा है, हमने खुद ही हाइजीन के नाम पर, विकास और सुविधाओं के नाम पर खुद के बच्चों को प्राकृतिक चीजो से दूर किया और अब प्राकृतिक संसाधन खत्म होने के कगार पर हैं, तभी तो बूंद बूंद पानी के लिए संघर्ष है, शुद्ध हवा के रोने हैं, नयी नयी बीमारियां हैं और नये नये वायरस है..।

बस राहत नहीं है..!

मानवता भी कहां, जो चीजें पहले फ्री में मिलती थी, अब उसको धन देकर खरीदना पड रहा है, और इसी धन के लिए मनुष्य हमेशा मनुष्य को भी मारता, काटता रहा है, फिर जानवर और जंगल तो बचाता ही कौन..?

हां.. सिवाय अफसोस के कुछ नही हमारे पास, लेकिन मैं बच्चो को ऐसे तडपते नही देख सकती..!

तो क्या करोगी..? जब धरती पर थी ,तभी क्या कर लिया था तुमने, तब भी तो किल्लतें थी..।

थी, पर इतनी नहीं थी, काम तो चल रहा था..!

वो अभी भी चल रहा है, उन्होने बिना मुस्कुरायें जीना सीख लिया है... वे सब सामाजिक दूरी निभा रहे हैं.. ।।

©®sonnu Lamba


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Sonnu Lamba

sonnulamba

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    Wonderful write up 👌👌

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks dear @archana

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