सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय..!

ग्लेमर वर्ड हमेशा अपनी चमक दमक के पीछे अपनी कुरूपता छुपाता आया है.... पढिए पूरा लेख...!

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 22 Sep, 2020 | 1 min read
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इसमें कोई दो राय नही है कि फिल्म इंडस्ट्री कला और संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतू बनाया गयी थी, कईं बेहतरीन साहित्यिक कृतियों पर वहां फिल्में बनती आयी है... जैसे शरतचंद्र की परिणिता, सरस्वतीचंद्र आदि...! 

कितने ही महान व्यक्तिव पर भी फिल्में बनती आ रही हैं... गांधी जी से लेकर एम. एस.धोनी तक कितनी कहानियां ऐसी हैं जो युवा वर्ग को प्रेरित करती हैं...! 

जैसे.. चक दे इंडिया, दंगल, मैरी कौम, भाग मिल्खा भाग, 

ये सब स्पोर्टसमैन स्पिरिट सिखाते हैं..! 

हाल ही में आई पंगा.. मध्यम वर्गीय गृहणियों में कुछ करने का जज्बा जगा देती हैं..! 


इसी तरह बहुत से प्रेरक गीत हैं जो फिल्मों के ही हैं, कान में अगर बेमन के भी पड जायें तो मुर्दे में भी जान फूंक दे..! 

जैसे -रूक जाना नही कहीं तुम हार के...! 

नदियों चले, चले रे धारा, चंदा चले, चले रे तारा, तुझको चलना होगा...! 

और भी बहुत कुछ....! 


तो कहने का मतलब यह है कि अच्छी और प्रेरक फिल्में बनती हैं, बनती रहेंगी और लोग उनसे प्रभावित भी होते हैं कईंयो की जिंदगी भी बदल जाती है, इनसे प्रेरणा लेकर..।


लेकिन फिर समस्या कहां हैं और कैसे शुरू होती हैं...?

 

समस्या शुरू होती उस इंडस्ट्री की चमक दमक और ग्लेमर से ,जब एक आम इंसान उनकी चमक दमक को अपनाना चाहता है, उन कलाकारो जैसा बनना चाहता है, वो उन सब चरित्र को तो भूल जाता है जो उन्होने निभाये थे, वो हीरो हीरोइन की जिंदगी को फोलो करने लगता है, वे क्या खाते हैं..? कैसे रहते हैं..? कैसे उठते ..बैठते है..? क्या पहनते हैं ..?

और फिर शुरू होता है अपने प्रिय हीरो, हीरोइन को अंधाधुंध फोलो करते जाना,

 वो तो जी लैट नाइट पार्टी करते हैं हम भी कर लेते हैं ..! ड्रिंक करना तो जरूरी है, आजकल सभी करते हैं, देखो लकडियां भी करती हैं, तो हमने कर लिया तो क्या बुराई है..? देखो वे सब कैसे कपडे पहने हैं, यही तो फैशन हैं, हमें भी पहनना चाहिए ,थोडा कटा फटा है तो क्या.. ये तो डिजाइन है..! 

यहीं से परेशानी शुरू होती है जब युवा वर्ग पर्दे पर निभाएं इनके चरित्र से नही... इनकी व्यक्तिगत जिंदगी में रूचि लेकर उसे अंधाधुंध फोलो करने लगता है..! 



एक बात तो ये है कि जैसे दुनिया में तमाम बुराईंया हैं, वैसे ही फिल्म इंडस्ट्री में भी है, और दूसरी बात ये है कि वहां कुछ ज्यादा ही है क्योंकि उसका नाम ही ग्लेमर वर्ड है, वो चमक दमक के पीछे अपनी कुरूपता, अपनी इंडस्ट्री की कुरूपता छुपाने की कोशिश करते हैं ,आजकल चीजें जैसे सामने आ रही हैं... सब देख रहे हैं, नशा, ड्रग्स, माफिया कनैक्शन, क्या क्या नही... ?

संजू फिल्म देखी होगी आप लोगो ने ,थोडा ही सही उन्होने खुद ही दिखाया, उनकी इंडस्ट्री की सच्चाई क्या है..! सबसे ज्यादा अनस्टैबल रिलेशनशिप वहीं है. .! वहां कोई भी रिश्ता लम्बा नही चलता, विवाह नाम की संस्था का तो उन्होने मखौल उडाकर रखा है..! 


आजकल की हर दूसरी फिल्म में हिंसा, मारधाड, माफिया, अंडर वर्ल्ड, ड्रग्स,सेक्स,क्राइम ....यही भरा पडा है ..!और जिस तरह गत कुछ वर्षो में पश्चिम का असर हमारे पूरे देश में फैला है, वो फिल्म इंडस्ट्री से ही आया है, सबसे पहले उन्होने ही पश्चिम की जीवन शैली को एडोप्ट किया... और उसके बाद वो युवा वर्ग में आता जा रहा है जिसका परिणाम घातक हो रहा है..! 


हर देश की अपनी भौगोलिक संस्कृति, देशकाल, परिस्थिति और इतिहास होता है, अगर हम बिना चिंतन मनन दूसरे का फोलो करने लगगे तो निश्चित ही वो मिसफिट होगा, कईं तरह की विसंगतियां उससे पैदा होगी और समाज विकृत होता जायेगा.. जो कि हो भी रहा है. .!


तो सार ये है कि इतना संतुलन और ज्ञान युवा पीढी में ..नही है जो वो केवल अच्छी बाते फिल्मो से सीखे और वहां के तथाकथित ग्लेमर से प्रभावित ना हो...! 


अर्थात... 

"सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय"


लेकिन ऐसा कभी हुआ है कि काजल की कोठरी में जाकर कोई बिना दाग के वापस आ गया हो ,...और युवा जो कि जोश में तो भरपूर रहते हैं लेकिन होश में कम उनकी ऊर्जा अच्छी दिशा में ही लगनी चाहिए तभी वो रचनात्मक होगी,।


 इसलिए मैं यही कहना चाहूंगी कि फिल्मों को और फिल्मी लोगो के जीवन को युवाओं को बिल्कुल भी फोलो नही करना चाहिए, हां कुछ कहानियों से और गीत से प्रेरणा लेनी चाहिए, अच्छी और पारिवारिक फिल्में देखें परिवार के साथ ,आपस में डिस्कशन करें कि फला फिल्म क्या अच्छा था.. ?

क्या कुछ था, जिसे फोलो किया जाये.. या नही..! बडे लोग समय समय पर अपने बच्चो को मार्गदर्शन दें इस समबन्ध में. .!



फिल्म इंडस्ट्री के लिए मैं कहूंगी कि वहां केवल कला है,आज संस्कृति दम तोड़ गयी है और आप सोचिए कला, संस्कृति के बिना कब तक चल पायेगी, कला, संस्कृति के बिना बिल्कुल ऐसे हैं जैसे बिना प्राणो का शरीर.. ..!

पूरी इंडस्ट्री को आत्ममंथन की जरूरत है, अगर अपनी इंडस्ट्री बचाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसकी आत्मा को बचाइये ..! और कलाकार खुद पर अंकुश लगायें,संयम में रहें ,ये समझे कि देश के युवा उन्हें रोल मोडल मानते हैं, तभी तो सही मायने में हीरो कहलायेंगें.. !!


©sonnu Lamba 🌸



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Sonnu Lamba

sonnulamba

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Avanti Srivastav · 3 years ago last edited 3 years ago

    Again very well written

  • Preeti Gupta · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सही आकलन किया आपने 👌👏🌹

  • Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बढ़िया लिखा है

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बहुत धन्यवाद अवन्ति जी, राधा, और प्रीती जी, 🙏

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    Informative Post

  • Vineeta Dhiman · 3 years ago last edited 3 years ago

    Waah bilkul satya likha hai aapne

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बहुत धन्यवाद संदीप, और विनिता जी, 🙏

  • R.Goldenink · 3 years ago last edited 3 years ago

    Sahi...andhbakt nahi hona chahiye.

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks @r. Golden ink

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    Bahut badiya

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks @babita

  • Shubha Pathak · 3 years ago last edited 3 years ago

    So right👏👍

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    थैंक्यू दोस्त @शुभा

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