शुक्रिया प्रकृति

प्रकृति हमें कितना देती है, और हम...

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 26 Nov, 2020 | 1 min read
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दुख की उन अंधेरी काली रातो में 

जब पलक झपकना तक भूल गयी थी.. 

इतनी फिक्र रही, इतना भय कि 

ये स्याह रात हो ना जाये लम्बी, 

फैल ना जायें इसकी कालिख दिन पर कहीं, 

लेकिन फिर भी.. सूरज निकला, 

हां , उसी वक्त, अपने समय पर...!! 

©sonnu Lamba 


प्यारी प्रकृति मां...! 

आज जब शुक्रिया कहने का मन है तो, मैं इसे यूं ही जाया कैसे होने दूं ..?

इसलिए मेरी ओर से आज शुक्रिया आपका मदर नेचर , प्रकृति मां , आप मुंह से बोलकर कभी कुछ नही कहती हो , कोई रोक टोक भी नही करती हो, सीधे तरीके से लेकिन कितना कुछ सिखाती हो, बताती हो, 

हर रोज नियत समय पर दिन, रात का होना, मतलब समयचक्र यूं ही चलता रहेगा.. चल रहा है ..कितनी भी परेशानी हो, समय गुजरता ही है।


धरती में जैसा बीज डाले, पौधा वैसा ही होता है, यानि कभी ऐसा न हुआ कि आम बोया और बबूल निकल आया हो, इस बात से आप अनजाने में ही सिखा देती हो कि जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल पाओगे...।


पेडो को बतहाशा काट देने से,पडने वाला सूखा, कम या ज्यादा होती बारिशे, मौसम का असंतुलन, मानो ये सजाएं है जो अंधाधुंध प्राकृतिक संशाधनो के दोहन के फलस्वरूप तुम देती हो कि संभल जाओ अभी भी.. नही तो मैं नही संभाल पाऊंगी..। 


कांटो के बीच फूलो का खिलना, बताता है कि परेशानियां भले ही हों मुस्कुराओ.. सब ठीक लगेगा..! 


और भी न जाने क्या क्या, अनगिनत उपकार और सीख आपकी हम पर उधार हैं, इस सम्पूर्ण सृष्टि पर उधार हैं इसलिए कृतज्ञता तो बनती है..। 

शुक्रिया प्रकृति..!

 बहुत बहुत शुक्रिया..! 


©sonnu Lamba 


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