जडें

अपनी जडो से कटकर भी भला कोई फला फूला है कभी....!

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 30 Aug, 2020 | 1 min read
Life Culture Values Senior citizen Morality

बरसो से आंगन मे खडा बरगद...कब से...पता नही...क्या सोचता होगा ...? सोचती हूं अक्सर वो मुझसे बात करे ...कभी तो बताये अपने जी की..उस स्नेहिल से बुजुर्ग की तरह जो झुरिर्यो से झांकती अनुभवी आंखो से भी बोलते है...उनके पास घडी दो घडी बैठ जाओ तो अपनेे कांपते हाथ सिर पर रख देते है....आशीर्वाद खुद ब खुद आत्मा मे समा जाता है...आत्मा से ही तो निकलता है...!


ऐ बरगद !तुझमे मुझे वही दादा दिखते है जो अपनी जमीन से गहरे जुडे रहते है और सबको सँभाल लेते हैं... उनके होने से ही सब सुरक्षित महसूस करते है किसी जीवन बीमा की जरूरत ही नही होती...उनके पास धैर्य होता है जो वो अपने विचलित होते बच्चो को देते रहते है....!


बरगद...फिर तुम उदास क्यू रहते हो आजकल ...क्या तुम्हारा धैर्य चुक गया...पिढियों से झूमते रहे हो ...अब ये उदासी...तुम भी असुरक्षित महसूस करने लगे क्या? देखो इस पीढी को बच्चे विदेश तक चले गए... इस तरक्की से खुश नही हो....!


खुशी क्या और क्या गम .. मै तो निर्विकार हूं...सोचता हूं ऊंचाईयो को छूने मे कोई बुराई नही अगर अपनी जमीन का भान रहे तो....जडो से कट के क्या कभी कोई फला फूला है....।।

✍सोनू...?

(Sonnu Lamba)

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