कैसे जीऊंगी मैं...

फौजी जब तिरंगे में लिपट कर घर आता है, क्या क्या टूटता है...

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 10 Jun, 2020 | 1 min read
#romantic #patriotic

वो हाथ में उसकी फोटो थामें बेतहाशा रोये जा रही थी ...और उसके मन और मस्तिष्क ने भी आज उसे ओर रूलाने की ठान ली थी...अरूण के साथ बिताया एक एक लम्हा उसके सामने खुला पडा था,हर लम्हा बेतहाशा सिसक रहा था.. चाहे वो प्यार की नाजुक घडी हो...ठहाको का दौर हो या मीठी तकरारें ...सब सिसक रहे थे...उसकी सांसे गले में अटक अटक जा रही थी..आंखे लाल अंगार सी जल रही थी... ,

कैसे ?

आखिर कैसे?

जी पाऊंगी मैं तुम्हारे बिना अरूण ...देश सेवा तुम्हारा फर्ज था...तुम्हारा सेना में होना ही कईं बार मुझे डरा जाता था कि जाने कब कोई मनहूस खबर कानो में शीशे से पिंघल जायेगी...लेकिन इस तरह और इतनी जल्दी ....."

.आई कान्ट बियर..."

आई कान्ट लिव विदआउट यू.."

.प्लीज प्लीज मैं भी मर क्यूं नही जाती....ये सांसे इतनी बेशर्म कैसे हैं कि घुट रही है लेकिन आ -जा रही है...कहते कहते वो बेहोश हो गयी...।

अभी सात माह ही तो हुए थे अरूण और रश्मि की शादी को...एक दिन जागर्स पार्क में सुबह सुबह दोनो की मुलाकात हुई थी...पहली नजर में ही दिल दे बैठी वो उस छैल छबीले नौजवान को...बातें बढी ..धीरे धीरे उसे पता चला कि अरूण फौज में है छुट्टी आया हुआ है...चंद मुलाकातो में ही दोनो एक दूसरे को बहुत पसंद करने लगे ..यादो को वो पन्ना उसके जेहेन में आज भी ताजा है...जब अरूण ने उसे पहली बार पर्पोज किया था शादी के लिए...अरूण ने धीरे से उसका हाथ अपने हाथो में लेकर कहा था...बोलो रश्मि क्या पूरी जिंदगी मेरे साथ बिताना पसंद करोगी ...और जैसे ही रश्मि ने अपना दूसरा हाथ उसके हाथो पर रख..सहमति में अपना सर उसके कांधो पर रखा तो ऊपर से फूलो की बारिश होने लगी इतनी जबरदस्त टाइमिंग....निहाल हो गयी थी वो खुद की किस्मत पर...फिर क्या था ,अरूण की चाहत को तो जैसे आसमान मिल गया हो उसने तपाक से रश्मि के घर जाकर, रश्मि के पिता से उसका हाथ मांग लिया....। और चट मंगनी पट ब्याह हो गया..।

सातवें आसमान पर थी वो...अरूण ने कुछ ही दिनो में इतना प्यार दिया उसे कि समझ ही नही पा रही थी कि कैसे संभाले?

हमेशा उलाहने में कहती कि अरूण इतना प्यार मत करो कि मैं संभाल ही ना पाऊं ..."

तो वो मुस्कुराता हुआ जबाब देता ...मैं हूं ना"

मैं सब संभाल लूंगा तुम्हे भी और हमारे प्यार को भी"

लेकिन तुम जब वापिस डयूटी पर चले जाओगे ...बहुत याद आयेगी...तुम्हारी"

मैं वक्त मिलते ही तुमसे बात किया करुंगा ...जानेमन"

तुम्हे कभी अकेला फील नही होने दूंगा..."

देख लेना तुम...'"

और वो रूंआसी होकर उसकी बांहो में समा जाती थी..जैसे उस लम्हे को रोक लेना चाहती हो...वहीं."

वायदा..."

हां पक्का वायदा...मेरी जान.."

ये सब बेहोशी में बुदबुदाती हुई...थोडा होश में आती है और फिर से चीत्कार उठती है....आज तिरंगे में लिपट कर तुम बेजान लौटे हो अरूण ...लेकिन मैं कैसे कहूं कि तुम वायदा तोड गये हो...सात महीने में सातो जन्म का प्यार दे गये तुम...क्यूं क्यूं...??

मैने कहा था ना...मैं कैसे संभालूंगी ...इसे तुम्हारे बिना.."

कैसे...

कैसे...? 

और फिर से एकबार उसकी चेतना उसका साथ छोड गयी..।।

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Sonnu Lamba

sonnulamba

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  • Babita Kushwaha · 5 years ago last edited 5 years ago

    So touching

  • Sonnu Lamba · 5 years ago last edited 5 years ago

    बहुत बहुत धन्यवाद बबिता जी

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