स्त्री

स्त्रियाँ घर तोड़ देती हैं?

Originally published in hi
❤️ 1
💬 2
👁 889
Sonia saini
Sonia saini 12 Jan, 2021 | 1 min read

सुना था कभी.. स्त्रियाँ घर तोड़ देती हैं 

रिश्तों को बिखेर देती हैं ..

 ब्याह के आती हैं पराए घर वाली,

 बड़ी आसानी से अपनों को छोड़ देती हैं..

सिर्फ सुना नहीं,  

अंधेरे में आँसू बहाने वाली स्त्रियों को 

दिन में झूठी मुस्कुराहट बिखेरते देखा भी है। 

वो जो ब्याह के लहंगे और चूड़ियों को भी गाहे बगाहे निकाल कर निहारती हैं.. फिर चुप से मोह की डोर से कस कर बाँध वापिस रख लेती हैं। 

वह जो तस्वीरों पर 

 धूल नहीं जमने देती

 रिश्तों की फिक्र न करती होगी? 

वह जो कबाड़ से भी ढूंढ निकालती हैं कुछ काम का सामान, 

कैसे मान लूँ कि घर तोड़ देती हैं... मैंने घर की दीवारों से भी प्रेम करने वाली स्त्रियाँ देखी हैं।

वह जो झेलती हैं, सहती हैं, बस ढोती रहती हैं

 कभी देखना झाँक कर उनकी आँखों में 

एक आस की ज्योत हर दम जलती रहती है।

कभी पूछना उनसे छोड़ क्यूँ नहीं देती..

एक दर्द सा उभरता है आँखों में उनकी

एक चिंता की लकीर खिंचती है माथे पर

फिर वो गिनाती हैं अपनी असंख्य मजबूरियाँ

छोटे भाई बहनों की चिंता

भाभी की गृहस्थी की परवाह

पिता के सम्मान, पति की देखभाल, बच्चों का भविष्य... 

अपने अतिरिक्त वह सबके बारे में सोचती है। 

फिर भी कह देते हैं, वह तोड़ देती है...


1 likes

Support Sonia saini

Please login to support the author.

Published By

Sonia saini

soniautlvx

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.