आज बहुत दिनो के बाद कलम उठाने को मन मचला .. कई दोस्तों और ईमानदार पाठकों ने पूछा भी बीच बीच में.. लेकिन अब कम ही लिख पाती हूँ जाने क्यूँ कलम साथ नहीं देती.. खैर छोड़िए..! मन की बात लिखने के लिए वैसे तो मैं अपने वॉल का ही सहारा लेती हूँ लेकिन अब फेसबुक से सुरक्षित प्लेटफ़ॉर्म मुझे paperwiff लगता है इसलिए अपने मन की बात आज यहाँ से!
अभी कुछ दिन पहले ही एक पोस्ट नजर के सामने आया.. लिखा कुछ यूँ था कि "1 लाख रुपये की तनख्वाह वाले सरकारी बाबु हटाओ और privatisation करके 25000 में चार बाबू रख लो।"
मुझे इतनी हैरत हुई कि बयां नहीं कर सकती। मैं खुद कोई सरकारी कर्मचारी नहीं फिर भी यह आधी अधूरी जानकारी लेकर हम जा कहाँ रहे हैं। इस पोस्ट पर हजारों लाइक और शेयर थे। अब इसकी समीक्षा करते हैं।
सबसे पहली बात तो निजीकरण का समर्थन करने का यह बेहद बेहूदा तर्क है। दूसरी बात किसी भी बाबू अथवा क्लर्क को 1लाख रुपये तंख्वाह नहीं मिलती और तीसरी बात यह कि सरकारी नौकरी के प्रति इतना जहर भारत जैसे देश में? उस देश में जहाँ आज भी युवक युवतियां पाँच पाँच साल सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करते हैं। आखिर हम विरोध किसका कर रहे हैं? आंकड़ों के अनुसार एक सरकारी क्लर्क को लगभग 30000 तनख्वाह मिलती है और एक प्राइवेट कंपनी में उसी काम के लिए 15 से लेकर 30 000 तक मिलते हैं। जिसमे से 30 हजार पाने वालों का प्रतिशत बहुत कम है। ऐसे में सरकारी नौकरी में ज्यादा तनख्वाह लेने वाले को देखकर जलने की बजाय हमें सरकार के सामने आवाज उठानी चाहिए कि चाहे निजी कम्पनी ही क्यूँ न हो कर्मचारियों का शोषण नहीं किया जाना चाहिए। समान न सही किन्तु वेजेस में इतना अंतर होना गलत है। एक नीति होनी चाहिए कि न्यूनतम कितना वेतन किस पोस्ट के लिए मिलेगा और सभी निजी कंपनियों को उसका सख्ती से पालन करने का आदेश दिया जाना चाहिए। अपनी भूख मिटाने के लिए दूसरे के हाथ से छीन कर हम कब तक चल पाएंगे? आखिर देश का युवा अपने मुद्दों से भटक कैसे गया? युवा बेरोजगारी पर अफसोस नहीं करते किन्तु निजीकरण के अंधअनुकरण पर चटकारे अवश्य लेते हैं। हमे नहीं मिला तो कोई भी क्यूँ खाए यह सोच गलत है। हमें मुद्दों पर, समस्याओं पर केंद्रित होने की आवश्यकता है। इस तरह जुमले बाज़ी करना अफसोस जनक है।
क्या एक छोटी सी सरकारी नौकरी को पाने के पीछे की बरसों की लगन और मेहनत हमें दिखाई देती है जब हम किसी सरकारी करमचारी को कोसते हैं? क्या आप जानते हैं कि ssc जो कि भारत का शायद सबसे बड़ा बोर्ड है, mts यानी कि एक चपरासी की नियुक्ति के लिए भी प्रतियोगी परीक्षा कराता है जिसके कई चरण होते हैं जिसके लिए एक दो नहीं जाने कितने ही साल युवा तैयारी करते हैं!
हमें किसी की समृद्धि से जलना नहीं है.. खुद को काबिल और समृदध बनाना है, अपने हक के लिए आवाज उठानी है, किसी पार्टी या नेता की अंध भक्ति नहीं एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाना है।
मेरी बातों से आपकी असहमति हो सकती है आशा है आप भाषाई मर्यादा का ध्यान रखेंगे।
धन्यवाद।
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