वीरान किला

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Sonia saini
Sonia saini 11 May, 2020 | 1 min read

"आइए आइए लेखक महोदय आपका ही इंतजार था।

हमारे शो डर की टी आर पी तेज़ी से नीचे गिर रही है, पिछले चार महीनों की रिपोर्ट तुम्हें मेल की थी पढ़ तो ही होंगी तुमने।"

"सर मैं अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रहा हूँ, आपको सबसे बेहतरीन कहानियाँ लिख कर दे रहा हूँ।"

"हूँह.... बेहतरीन होती तो मेरा टॉप रेटेड शो ऐसे आखिरी दिन नहीं गिन रहा होता। मुझे चैनल से चेतावनी मिल चुकी है, तुम्हें आखिरी मौका दे रहा हूँ। बाकी मेरे पास लेखकों की कमी नहीं है। "

" लेकिन सर....! "

" देखो विनीत, तुम्हारे जैसे नवोदित लेखक को हमने फर्श से अर्श तक पहुँचाया था ये सोच कर कि तुम मेहनत करोगे, कुछ नया content लाओगे! दर्शक वही सींग वाले गंदी शक्ल के भूत और राक्षस देख कर थक गए हैं । आजकल उन भूतों से बच्चे भी नहीं डरते हैं। कुछ रियालिस्टिक दिखाओ...! बाकी लेखन तुम कर रहे हो, कहाँ गलती हो रही है ये तुम सोचो। "

" अब बस भी करो! आज दोपहर से लगातार पी रहे हो और कितनी सिगरेट फूंक चुके हो, कुछ अंदाज़ा है तुम्हें? "

" रोशनी, मेरे हाथ से शो जा रहा है। मैं क्या करूँ...…? लिखता तो हूँ हर हफ्ते के लिए एक नये राक्षस की नई कहानी।"

" ठीक ही तो कहा डाइरेक्टर ने, कुछ रियालिस्टिक लिखना पड़ेगा। उसके लिए पहले रियल में किसी प्रेत का सामना करना पड़ेगा। मिल गया आइडिया! "

" क्या आइडिया मिल गया विकास?"

" रोशनी मैं गढ़ कुंदर के किले में जा रहा हूँ। मैंने काफी सुना है उसके बारे में, शायद मुझे वहाँ कोई स्टोरी मिल जाए। "

" विकास हॉरर लिखना अलग बात है और खुद भूतों के बीच जाना अलग! पागल मत बनो! "

" मेरे कैरियर का सवाल है रोशनी, मुझे जाना ही होगा।"

" ठीक है मैं भी साथ चलूँगी।अब जो होगा देखा जाएगा। "

अगले दिन ही वो दोनों बुंदेलखंड के लिए निकल गए। विकास ने सारी तैयारी कर ली थी। एक डिजिटल कैमरा, एक विडियो रिकॉर्डर, दो टार्च, माचिस, मोबाइल का पावर बैंक, कुछ लकड़ियां, एक दो जरूरी दवाएं, दो बीयर और एक चादर। रोशनी ने भी खाने पीने का सामान और कुछ जरूरी सामान पैक कर लिए थे। अपनी गाड़ी से मुंबई से बुंदेलखंड आने में काफी समय लग गया था। रास्ते में रोशनी सुंदर दृश्यों को केमरे में कैद कर रही थी। बुंदेलखंड से टीकमगढ़ आते आते शाम होने लगी थी। आसमान दिन और रात के मिलन का साक्षी बन हया से लाल हो रहा था। हल्की ठंड माहौल को खुशनुमा बना रही थी। तकरीबन 12 किलोमीटर दूर से ही गढ़ कुंदर का किला दिखाई देने लगा था। मंजिल अब सामने ही थी। एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित यह किला काफी खूबसूरत था। तीन मंजिला इमारत सामने से देखने में काफी वृहद और रहस्मय नजर आ रही थी।जैसे जैसे गाड़ी किले के नजदीक पहुँच रही थी विकास और रोशनी के हृदय में भय और कौतूहल के मिश्रित भाव पनपने लगे थे। पता नहीं वास्तव में यहाँ कोई कहानी मिलेगी भी या सब कोरी अफवाह है? इस बात की भी पूरी संभावना थी कि वहाँ कोई शक्तिशाली साया हो! न जाने अगला पल उनके लिए क्या लेकर आने वाला था। रोशनी ने विकास का हाथ कसकर थाम लिया। बिना कहे भी दोनों ही एक दूसरे के लिए चिंतित थे।

गाड़ी अबतक किले के काफी नजदीक आ चुकी थी, लेकिन जैसे जैसे वे नजदीक पहुँच रहे थे किला जैसे उनकी पहुँच से दूर हो रहा था। कुछ ही देर में वे किले के सामने थे। उन्हें अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था, दूर से इतना विशाल और भव्य दिखने वाला किला मानो उनकी आँखों से अदृश्य हो चुका था, और जो उनके सामने खड़ा था वह थी एक जर्जर हो चुकी इमारत!

वहाँ पहुँचने से पूर्व ही स्थानीय लोगों से बातचीत में उन्हें पता चला था कि यह महल तीन नहीं, पाँच मंजिला है। दो मंजिल जमीन के भीतर है किन्तु वहाँ जाने का साहस कभी किसी ने किया नहीं। विकास मन बना चुका था कि वह एक बार नीचे की मंजिल भी जरूर देखेगा। किले में प्रवेश करते हुए शाम के साढ़े छह बज गए थे। हल्का धुंधलका छाने लगा था। पूर्णिमा की चाँदनी रात और गहराते धुंधलके ने मानो उस जीर्ण शिर्ण किले में जान फूंक दी थी। ऐसा लगता था जैसे अभी यह अपनी कहानी कह उठेगा।

विकास और रोशनी किले के भीतर पहुँच गए थे। किले को इस तरह से बनाया गया था कि चंद्रमा की चांदनी छिटक कर हर भाग में हल्का उजाला कर रही थी।

"थकान हो रही है विकास चलो खाना खाकर थोड़ा सुस्ता लेते हैं उसके बाद किले में घूमेंगे।"

"ह्म्म..."

"रोशनी तुम्हें डर तो नहीं लग रहा न..?"

"तुम हो न मेरे साथ भूतों के जन्म दाता, कितने ही प्रेतों की नियति तुमने अपने हाथों लिखी है तुम्हारे होते मुझे भला क्या डर! "रोशनी ने भारी होते माहौल को संभालने का प्रयास किया।

" जानता हूँ, कहीं न कहीं इस किले की खामोशी मुझे भी डरा रही है लेकिन हिम्मत रखनी होगी। तुम चाहो तो अभी भी वापिस जा सकती...! "

" प्लीज विकास छोड़ो ये सब... "रोशनी ने विकास के कंधे पर सर रख दिया।

" तुम्हें ऐसा नहीं लग रहा कि अचानक ठंड कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। "रोशनी ने विकास की तरफ देखते हुए कहा।

" चलो अपनी टार्च पकड़ लो... अब अन्दर चलते हैं। "

" विकास, वहाँ कोई है... "अचानक ही रोशनी हकलाते हुए बोली।

" कहाँ... अरे बाबा तुम अपनी परछाइ से भी डरोगी क्या अब। "

" नहीं वहाँ कोई अकृति बन रही है, मेरा विश्वास करो। "

विकास और रोशनी विडियो कैमरा ऑन कर करके टार्च की रोशनी में आकृति की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

" अरे ये कौन है? ये तो कोई गाँव की कोई लड़की लग रही है, देखो इसका पहनावा, इसके बाल और आभूषण। आजकल ऐसे कपड़े कौन पहनता है! लेकिन ये यहाँ कर क्या रही है?" रोशनी ने फुसफुसाते हुए विकास से कहा।

लड़की पलट कर उनकी और देखती है। बेहद खूबसूरत सी लड़की पैरों में मोटी मोटी झांझर पहने, टखने तक की लंबाई वाला घाघरा और लाल रंग की सुंदर सी चोली। महावर से रंगे हाथों को अपने चेहरे पर ढक कर वह टार्च की रोशनी से बचने का प्रयास कर रही है।

विकास सकपका कर टार्च बंद कर देता है। जैसे ही दोबारा टार्च ऑन होता है लड़की अपनी जगह से गायब हो चुकी है। विकास और रोशनी के हाथ पाँव ठंडे पड़ने लगे हैं. तभी झांझर की आवाज सुनाई पड़ती है।

"विकास देखो वो रही.. लेकिन ये जा कहाँ रही है?"

"श् श...." विकास रोशनी को इशारे से चुपचाप पीछे पीछे चलने के लिए बोलता है।

रात के तकरीबन 12 बज रहे हैं। आधी रात को एक खामोश किला, सन्नाटे को चीरती कुछ झींगुरों की झाँय झाँय और बीच बीच में नसों को भेदती उललुओं की ऊ... ऊ.., के साथ झांझर की झन झन माहौल को बहुत भयावह बना रही थी।एक हाथ में कैमरा और दूसरे हाथ से रोशनी का हाथ पकड़े विकास आगे बढ़ रहा है। लड़की एक सीढ़ियों के पास जाकर दो पल को ठहर जाती है।

फिर नीचे की ओर उतरती सीढ़ियों पर जाते हुए आँखों से ओझल हो जाती है। वो दोनों भी पीछे पीछे सीढ़ियाँ उतर रहे हैं। सीढ़ियों के साथ ही लगे बोर्ड पर चेतावनी लिखी है, "सीढ़ियों से नीचे जाना मना है। नीचे कुछ पैरा नॉर्मल एक्टिविटी नोटिस की गई है।"

रात के अंधेरे में या लड़की को देखकर सम्मोहन के कारण वे दोनों बिना बोर्ड को देखे आगे बढ़ रहे हैं।

नीचे पहुँचने पर उजाला नाम मात्र का ही आ रहा था। दोनों ने अपनी टार्च जला ली थी। चारों ओर मकड़ी के जालों और धूल का साम्राज्य था। ठीक से ऑक्सिजन न मिलने से जैसे साँस भी अटकने लगी थी। नाइट मोड कैमरे अपना काम कर रहे थे। देखते ही देखते नीचे की मंजिल का रूप बदलने लगा। पुरानी गंदी इमारत सुंदर रंग बिरंगे फूलों से सज गई थी।बदरंग पत्थरों में चमक आ गई थी। वह लड़की सुंदर लिबास में सजी हुई दिख रही थी । देखते ही देखते किला सुंदर महल में तब्दील होता जा रहा था। सब तरफ लोग आ जा रहे थे। रोशनी ने डर के मारे विकास का हाथ मजबूती से पकड़ रखा था। महल में घूमते लोग कोई इंसान नहीं आत्माएं हैं यह तब पुख्ता हुआ जब कुछ लोग उनके आरपार निकल गए। भय से खून जमना क्या होता है इसका एहसास आज पहली बार हो रहा था।

लड़की को उसकी सखियाँ सजा रही है, बुंदेलखण्डी लोक गीत और ढोलक की थाप पूरे किले में सुनाई पड़ रही है। वहाँ होती अफरातफरी से ऐसा लग रहा है मानो कोई उत्सव या ब्याह का माहौल है। एक सैनिक जैसा दिखने वाला आदमी आकर इशारों में कुछ बोल रहा है।उसकी बात सुनकर हर तरफ रोना पीटना मच गया है। महल की सारी और‍तें एक जगह इकट्ठा हो रही हैं।सारे पुरुष हथियार लेकर बाहर की ओर भाग रहे हैं।

"राजकुमारी जी कुँवर सा नहीं रहे....!" एक सैनिक गर्दन झुकाए शोक समाचार सुना रहा था।

"नहीं..."

"रानी सा, सिर्फ कुँवरसा ही नहीं आपके भाई और पिताजी भी युद्ध में..."

" ब्याह से पहले ही जिस कुँवर ने मेरे मान की खातिर अपनी जान दे दी.. मैं प्रण लेती हूँ कुँवर सा के अलावा कोई मुझे छू भी नहीं सकेगा।" वह चिल्लाई।

उसकी गरज से महल के पत्थर हिलने लगे थे।

विकास और रोशनी एक कोने में सहमे खड़े थे।

" वे लोग किले के पास पहुँच गए हैं, संदेश भिजवाया है आज से आप और ये किला उनकी अधीनता स्वीकार कर लें नहीं तो भयंकर रक्तपात होगा और किले को रक्त से स्नान करा दिया जाएगा।"

राजकुमारी और महल में उपस्थित औरतें विलाप करने लगी। उनके रुदन से लग रहा था कि कानों की नसें फट जाएँगी। विकास और रोशनी ने अपने कानों पर हाथ रख लिया था।

अगले ही पल महल में प्रकाश के लिए जलाई गई लकड़ियों को उठाकर राजकुमारी ने स्वयं को आग लगा ली। एक एक करके सारी महिलाएं एक दूसरे से घेरा बना कर खड़ी हो गई।किले में जीवित महिलाओं की चिता जल रही थी। उनकी चीखें सीने को बेध रही थी। राजकुमारी सहित महिलाओं को ऐसे जलता देख रोशनी की चीख निकल गई।

रोशनी की चीख से वहाँ पर अब तक रचा गया तिलिस्म ख़त्म होने लगा, महल में लटके भारी खूबसूरत झूमर मकड़ी के जालों और धूल में बदलने लगे। चमचमाती दीवारे टूटे पत्थरों में बदल रही थी। खूबसूरत राजकुमारी अर्ध जली अवस्था में भयंकर चेहरे के साथ रोशनी की ओर बढ़ने लगी थी।

धीरे धीरे किले में उपस्थित सारी आत्माएँ जलते हुए रोशनी की ओर बढ़ने लगी। अभी तक उजाले में नहाया हुआ किला फिर से गहरे अंधेरे में डूब गया था। अंधेरे में कुछ साए उनकी और तेजी से बढ़ रहे थे।

"विकास कुछ करो... क्या हम यहाँ से बाहर नहीं निकल पाएंगे? तुम्हारी कहानियों में तो अंत में हमेशा आत्मा ही पराजित होती है। कुछ तो सोचो...!"

"यहाँ नहीं आना चाहिए था... नहीं आना चाहिए था....! ये मेरा किला है... एक बुंदेलखण्डी स्त्री की जुबान है यह यहाँ किसी बाहर के आदमी को जीवित नहीं रहने दिया मैंने कभी।जिस रानी महल में बिन आज्ञा के महाराज भी न आ सके हैँ उस रानी महल में तुम घुस आए!"

" रोशनी जल्दी अपना बैग खोलो उसमें हनुमान चालीसा रखी थी मैंने... "

" बैग की जिप नहीं खुल रही विकास... "

" तुम जाप करो... जय... जय... "

" मुझे आगे कुछ याद क्यूँ नहीं आ रहा... रोशनी.. तुम बोलो जय ह... ह... "

रोशनी और विकास को आत्माओं ने चारों ओर से घेर लिया है।

किले की दीवारें ध्वसत होकर गिर रही हैं। एक एक करके गिरते भारी पत्थरों और दीवारों की आवाज में कुछ चीखें घुट रही हैं। थोड़ी देर बाद सब कुछ सामान्य हो गया है।

रानी महल में प्रवेश करने का मुख्य द्वार ध्वस्त होकर बाधित हो गया है।

कहानी की तलाश में आने वाले विकास और रोशनी की कहानी का दुखद अंत हो चुका है, क्यूँकि कहानी और वास्तविकता में यही अंतर होता है। वास्तविक परिस्थितियों में संभलने का मौका नहीं मिलता और कुछ शक्तियों का कोई काट नहीं होता।

विकास की गाड़ी से पुलिस को उनके वहाँ आने की पुष्टि हो चुकी है किन्तु किले के भीतर उनका कोई सुराग नहीं मिला। खोजी पत्रकार अविनाश ने उनकी खबर निकालने का जिम्मा लिया है। अमावस्या की रात वह किले में बिताने का निश्चय कर चुका है। वीरान किले की चीखें सुनने वाला एक और इंसान शायद आज कहानी बनने वाला है।

सोनिया निशांत

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