रहस्य

कौन था वह शख्स जिसने मेरे दिल में दहशत पैदा कर दी।

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Sonia saini
Sonia saini 06 May, 2020 | 1 min read

सुबह सैर पर निकली तो पाया वही अधेड़ उम्र शख्स आज भी मुझे अपलक घूर रहा था।जहाँ एक ओर उसके हमउम्र पुरुष योगा करने में व्यस्त थे, वो बिना किसी झिझक एक टक मुझे देख रहा था। पिछले एक हफ्ते से मैं उसे अनदेखा कर रही थी लेकिन आज उसका मुझे देखकर रहस्यमय मुस्कान बिखेरना नाकाबिले बर्दाश्त हो रहा था। "प्रॉब्लम क्या है आपकी, क्यूँ मुझे घूरते रहते हैं?" मैं फट पड़ी थी। "अच्छी लगती हैं आप मुझे, कोई गलत इरादा नहीं बस देखने को जी चाहता है तो देख लेता हूँ।" उसने बेफिक्री से कहा। "हुँह... शर्म नाम की चीज नहीं है।" उम्र के तीस बसंत पार कर चुकने के बाद एक 45 - साल के आदमी की ऐसी हरकत पर मुझे टीनेज जैसा अहसास नहीं हुआ था। उसे इग्नोर करने के लिए मैंने अपना रास्ता बदलना उचित समझा। अगले दिन मैं कॉलोनी के पीछे वाले पार्क में वॉक पर निकल गई। लौटते समय देखा वो आदमी यहाँ भी खड़ा मुझे घूर रहा था। इस बार उसे देखकर गुस्सा नहीं आया था, अजीब सी सिहरन होने लगी थी। गौर से देखा तो याद आया कि पिछले एक हफ्ते से वह मुझे इसी ड्रेस में दिखाई दे रहा है। मैली सी सफेद कमीज और पाँव में टूटी चप्पल। पैंट भी मटमैले से रंग की थी। चेहरा इतना बदसूरत कि क्या कहूँ! बड़ी बड़ी भटेरे जैसी आँखे उसके चेहरे पर सामान्य नहीं लगती थी। थोड़ा आगे जाकर हिम्मत करके फिरसे मुड़कर देखा तो पाया, वो ठीक मेरे पीछे ही था। बस चीख निकलते निकलते रह गई थी। मैंने अपनी गति बढ़ा दी और तेज़ कदमों के साथ जल्द ही घर पहुँच गई। नवम्बर की ठंडी सुबह मे भी मैं पसीने से तर बतर हो रही थी। कई सारे सवाल दिमाग में कौंध रहे थे। उसे कैसे पता मैं आज दूसरे पार्क में जाने वाली हूँ? और मैंने तो उसको चलते हुए देखा ही नहीं फिर वो मेरे पीछे कैसे पहुँचा? ना कदमचाप सुनाई पड़े उसके आने के, न कोई आहट। मन में अजीब खयाल घूम रहे थे। सोचा पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी से पूछती हूँ उस आदमी के बारे में, वो भी तो रोज सुबह वॉक पर होते हैं उसी समय। "आपने देखा है, एक आदमी रोजाना बेंच पर बैठा हुआ घूरता रहता है लड़कियों को?" मुझे अभी भी अपना नाम लेने में संकोच हो रहा था। "कौन सा आदमी? मैंने तो ऐसा कोई आदमी नहीं देखा! पार्क में तो सभी कॉलोनी वाले ही होते हैं। आप शायद भूल रही हैं आउटसाइडर आर नॉट अलाउड इन दिस पार्क। " " शायद मुझसे ही भूल हुई होगी! "मैं चुपचाप वहाँ से निकल आई। " मुझे करना ही क्या है.. जो भी हो.. अबकी बार मुझे मिला तो सीधे सिक्यूरिटी को बुलाउँगी।" मैं भी खयाल को झटक जल्दी जल्दी ऑफिस के लिए निकल गई। अगले दिन सुबह न चाहते हुए भी मेरा ध्यान उसकी ओर ही था। थोड़ी देर बाद शर्मा जी भी दिखाई दिए, उन्होने हाथ हिला कर मुझे गुड मॉर्निंग किया मैंने भी मुस्कुरा कर गर्दन हिला दी। मेरी नजरें दौड़ते हुए तेज़ी से दाएँ बाएँ घूमकर अपनी तसल्ली कर रही थी। कुछ देर बाद शर्मा जी के ठीक पीछे खड़े हुए, उसे खुद को घूरता हुआ पाया। वो जाकर नजदीक की बेंच पर बैठ गया। आज भी उसकी रहस्यमय मुस्कान उसके होंठो से चिपकी थी। मैंने निर्णय लिया कि आज शर्मा जी को ये ढ़ीट आदमी दिखा कर रहूँगी और सिक्यूरिटी के सामने उसे बाहर निकलवा दूँगी। मैं आँखो से शोले बरसाती लगभग बेंच के नजदीक पहुँचने ही वाली थी कि शर्मा अपनी थकान मिटाने के लिए उसी बेंच के नजदीक पहुँच गया और धप्प से उस अधेड़ पर बैठ गया। अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था किन्तु मैंने सच में यह अपनी खुली आँखों से देखा था। कुछ देर बाद आँख खुली तो मैं अपने कमरे में थी। पति देव और शर्मा की आवाज कान में पड़ रही थी। "भाभीजी पता नहीं कैसे पार्क में गिर पड़ी। आप ध्यान रखिए उनका! कल भी कुछ अजीब बातें कर रही थी।" मैंने पूरी आँखें खोलनी चाही तो पाया वही चेहरा कमरे में मेरे बिस्तर से लगा खड़ा हुआ मुझे घूर रहा है। उसका काला रंग.. बड़ी बड़ी सुर्ख आँखें, और चिरपरिचित मुस्कान आज भी उसके चेहरे पर चस्पा थी। बिना होंठ हिलाए उसकी दोहरी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी," ले अब नहीं करूँगा तेरा पीछा, अबसे तेरे साथ ही रहूँगा।" सोनिया निशांत।

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