गर्भपात

स्त्री की पीड़ा को उजागर करती पंक्तियाँ

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Sonia saini
Sonia saini 18 Feb, 2020 | 0 mins read

गर्भपात

दर्द में छटपटाती

आँखें और मुँह भींच

अपनी चीखों को सीने में दबाती

पाने और खोने के

मिश्रित भाव हृदय में समाए हुए

पीड़ा से विहल तुम

एकांत में

मुकर्रर सजा को भोगती

ढूंढ़ रही हो

वही स्नेह भरा हाथ

अपने माथे पर

जिसकी छुवन से

घटने लगा था वेग प्रसव पीड़ा का

तुम खोजती हो

पति की आँखों में स्नेह

माँ के व्याकुल हाथों का

अपनी पीठ पर

बारंबार स्पर्श।

व्याकुलता किसी अपने

को पा लेने की

जो हर चेहरे पर खिली थी

अब हर चेहरा संवेदन हीन है

जिसको पाया ही नहीं

उसको खोने का ग़म भी कैसा

बताते हुए इसे नियति का खेल

हर शख्स व्यस्त है।

तुम उपेक्षित, खंडित,

पीड़ा से बिलबिलाती

घुटने सीने में घुसाए

अपने भाग्य को कोसती।

तुम्हें नहीं मिलती एक भी नजर

जो तुम्हारी वेदना को पढ़ पाए।

उगते सूर्य को नमन करने वाले

ग्रहण लगने पर

कर देते हैं

सूर्य का भी परित्याग।

तुमने तो खोया है

फिर भी अपना एक अंश।

स्त्री, तुम अनुपम हो

अद्वितीय हो,

सहनशीलता की मूरत हो

अपने क्षत विक्षत शरीर

आत्मा और मन को समेट

तुम कल फिर से मुस्कुराओगी

इस घर आंगन की चाकरी करते

स्वयं को खो जाओगी

पीली पड़ चुकी रंगत को

कमजोरी कह..

इस बात को छिपाओगी।

वात्सल्य सरिता बन हर

मन को तृप्त कर जाओगी

पोषित करने को एक तरु का जीवन

तुम फिर से धरा बन जाओगी...

तुम फिर से धरा बन जाओगी...

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