आसमां का परिंदा।

आसमा का परिंदा बनना चाहूं मैं नील गगन पर उड़ना चाहूं मैं।

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Sonia Madaan
Sonia Madaan 06 Feb, 2021 | 1 min read
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आसमा का परिंदा बनना चाहूं मैं

नील गगन पर उड़ना चाहूं मैं।


न हो फिक्र मुझे आशियाने की 

न रूठने की न मनाने की,

जिधर चाहूं वहीं डेरा जमा लूं

ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं ....


न भय हो मुझे किसी ताकत का 

न चिंता हो मुझे किसी रोज़ी रोटी की,  

जब चाहूं स्वेच्छा से अपना घरौंदा कहीं भी बना लूं 

ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं......


न धर्म जाति की परवाह मुझे 

न रिश्तों के बंधन मजबूर करें,

न सीमा न दहलीज़ हो कोई सारा आसमां ही मेरा रहे 

ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं..


न देखूं कोई सपना न हो टूटने का दर्द 

न हो कोई अपना न छूटने का डर 

बस प्रेम की भाषा और मीठी बोली मेरी जुबां पर रहे 

ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं....


न नफरत की दीवारें हो 

न कुछ पाने के लिए लंबी कतारें हो 

नफरत के भाव से अनभिज्ञ बस बेफिक्री की उड़ान हो 

ऐसा आसमां का परिंदा बनना चाहूं मैं...

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