वो मन की गांठें

एक छोटी सी सकारात्मक कहानी जो नायिका के मन की उन गांठों को अंत में खोल जाती है जो बचपन में अपनों की उपेक्षा और अवहेलना से लगी थीं।

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Smita Saksena
Smita Saksena 01 Feb, 2020 | 1 min read

"ओफफो, आप फिर से निशू के लिए भूरा रंग क्यों ले आए ? आपको पता तो है कि मुझे इस भूरे रंग से कितनी चिढ़ होती है अजीब मटमैला सा कोई रौनक ही नहीं इस रंग में।" सीमा चिढ़ते हुए बोली।
"एक बार देखो तो सही, बड़ी अच्छी , सुंदर ड्रेस है फबेगी अपनी निशू पर।"
"नहीं कह दिया न, ये रंग नहीं आप जाकर बदलवा कर कोई पिंक या और सुंदर से रंग की ड्रेस ले आओ।"
"ओफ्फो  कब इस रंग से तुम्हारी चिढ़ खत्म होगी?" सुजीत ने कहा।
कुछ भी कह न सकी  सीमा पर बचपन में माँ के लाए भूरे मटमैले कपड़े और बचपन की वो कसक याद आ गए।
यादों की पिटारी सी खुल गई जिसे वो हमेशा कसकर बंद रखती थी ।
दीदी के लिए माँ को गुलाबी, लाल रंगों के कपड़े लाते देखती तो उसका भी बाल मन मचलता उन रंगों को पहनने के लिए। तब जब भी उसने अपने लिए भी फरमाइश की या अपने लिए लाए रंगों के कपड़ों का विरोध किया तो माँ ने बस यही कहकर झिड़क दिया  "अपनी तुलना दीदी से करने के पहले शक्ल देख अपनी? तुझ पर कहीं ये सब रंग फबेंगे? जो लाई हूँ चुपचाप पहन।"
उसने सोचा और बहुत सोचा मेरी शक्ल में मेरा क्या दोष माँ ? कहना तो बहुत कुछ चाहा पर माँ की उपेक्षा ने जुबान सिल दी,शब्द मानों घुट कर रह गए और कभी भी कुछ कह न सकी पर मन में वो गाँठ ऐसी लगी कि खोले से नहीं खुली पर किस्मत से सुजीत मिले जिन्होंने उसे इतने पर्याय से अपनाया कि अपनो के दिये जख्मों पर मानों मरहम रखा हो किसी ने। आखिर ज़िंदगी और किस्मत को रहम आ ही गया था उस पर और जिंदगी की खुशनुमा शुरुआत हुई थी। दो प्यारे बच्चे निशू बेटी और सुयश बेटा पर निशू को उसका ही सांवला रंग मिला था और मां और दीदी ने आकर अस्पताल में ही फिर से बोल भी दिया था कि अपने जैसा ही सांवला रंग इसको भी दे दिया है, और यही बातें चुभ गई थी सीमा को। कुछ बदरंग से रंग और मन में पड़ी गांठें और कसकर लग गई थीं और मन में तब से ही सोच लिया था कि अपने बच्चों को इस भूरे रंग को दूर ही रखेगी जो उसके लिए हमेशा से भेदभाव और अपने रंगहीन बचपन का प्रतीक सा बन के रह गया था। उसने निशू और सुयश को हमेशा सुंदर रंगों से सजे कपड़े पहनाए पर वो गांठ ना खुली ना ही कुछ रंगों से उसकी चिढ़ और नफरत खत्म हो सकी। सुजीत से कह तो दिया कि ड्रेस वापस कर दें पर तभी कवर में से झांकती सुंदर सी ड्रेस की झलक मिली जो वाकई में बहुत खूबसूरत लग रही थी और उसको लगा अपनी ही इन मन की गांठों की उलझन सुलझन में वो इतना कोई रही कि ये भी नहीं सोचा कि सुजीत जिसने उसे इतना प्यार दिया और पूरे मन से अपनाया कभी उसके रंग की कमतरी का अहसास तक नहीं करवाया उसकी भी तो भावनाएं होंगी, आखिर पिता हैं वो निशू के और अपनी पसंद के रंग की ड्रेस वो उसके लिए ला सकते हैं। उसको अब इन गांठों को खोलना ही होगा ना खुलीं तो इसको तोड़ कर इनसे बाहर निकलेगी अब वो। हर रंग का अपना महत्व है ईश्वर ने हर रंग सुंदर बनाया है और वो भी बीती ताहि बिसार के आगे की सुधि लेगी और इसी निश्चय के साथ सीमा चल पड़ी सुजीत को रोकने कि ड्रेस वापस करने की जरूरत नहीं उनकी बिटिया हर रंग पहनेंगी। कबसे सीमा भी हर रंग पहनेंगी और इन गांठों के मकड़जाल से खुद को मुक्त करेगी ,देर तो लग गई पर जब जागे तभी सवेरा।

तो कैसी लगी आपको मेरी ये कहानी, अपने विचारों को कमेंट्स के जरिए मुझ तक पहुंचाएं और लाईक करना ना भूलें।

स्मिता सक्सेना

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