जागरूकता

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Smita Saksena
Smita Saksena 10 Apr, 2020 | 1 min read

ग्यारहवीं किस्त


कल सामान लेने गई तो काफी अच्छा नजारा देखने को मिला सभी सबरजीत की दुकानों पर दुकानदारों ने डोरियां बांध रखी थीं और डोरी के बाद भी चौकोर या गोले बना रखे थे जिससे लोग खरीददारी  करते

समय भी दूर दूर खड़े रह सकें। मुझे बहुत खुशी हुई ये देखकर कि कितनी जागरूकता फैल चुकी है। एक तरफ काफी पढ़ें लिखे लोगों ने भी मूर्खता करके इस वायरस को फ़ैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी वहां सब्जी वाले, केमिस्ट शॉप और राशन वाले किस तरह से इन सबका पालन कर रहे हैं। समझ नहीं आता कि लोगों को अपनी और अपने परिवार की जान की ही कोई फ़िक्र नहीं है घूम फिर रहे हैं आराम से। इससे खुद भी संक्रमित होते हैं और दूसरों को भी संक्रमित करेंगे आगे चलकर। और समझाने की कोशिश भी करो तो तुर्रा ये कि बोर हो रहे हैं तो इसलिए बाहर निकले। मतलब कि आधी दुनिया के देशों के लाखों लोगों की मौत भी इनको सबक ना दे सकी तो अब ये लोग किसी चीज, किसी परिस्थिति से नहीं सीख सकते। अभी भी काफी लोग हैं जो अपनी

 कामवाली को बुला रहे हैं कुछ समय भी ये अपने आप से काम नहीं कर सकते पता नहीं कामचोरी ज्यादा है इनमें या फिर ये भावना ज्यादा है कि पैसे तो देने पड़ेंगे ही तो फिर काम भी क्यों ना लिया जाए। आखिर अपने हाथ-पैरों को क्यों हिलाना जब सुविधा उपलब्ध है तो। 

खैर हम तो लॉकडाउन का पालन घर में रहकर कर रहे हैं और हमारे जैसे ही करोड़ों लोग भी कर रहे हैं तभी हमारे देश में लोग इस महामारी से कुछ हद तक बचे हुए हैं। मैंने अपनी मेड को भी एक महीने पहले छुट्टी दे दी थी उसे ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर कर दिये थोड़ा वो भी आराम कर ले थोड़ा मैं भी एक्सरसाइज कर लूंगी इसी बहाने। 


स्मिता सक्सेना 

बैंगलौर

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Smita Saksena

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