ज़रिया नज़रिया बदलने का!

ज़रूरत है साफ़ और सुदृढ सिनेमा की।

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Shubha Pathak
Shubha Pathak 29 Sep, 2020 | 1 min read

एक समय था जब सिनेमा को प्रेरित करने वाले एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखा जाता था। लोग खासकर युवा पीढ़ी उसमें पर्दे पर निभाए जा रहे किरदारों से प्रेरणा लेकर उसे अपने जीवन में उतारते थे क्यूंकि किरदार भी कुछ इसी तरह के बुने और दिखाए जाते थे। फिल्में और उनकी कहानियां ज़्यादातर सामाजिक बुराइयों के खिलाफ और सादा जीवन से ओत - प्रोत रहती थीं। अभिनेता, अभिनेत्री और अन्य नायकों के किरदार, डायलॉग और साथ ही साथ संगीत और गीतों के बोल ऐसे होते थे कि आज भी लोग पुराने गीतों को ही गुनगुनाना ज़्यादा पसंद करते हैं।

उनके भाव और अर्थपूर्ण बोलों के कारण कुछ गाने तो आज भी ऐसे हैं जो आधुनिक निर्माता और निर्देशक उन्हें ही अपनी फिल्मों में रीमिक्स के रूप में पेश कर के लोगों का मनोरंजन करते हैं। वेशभूषा, चरित्र - चित्रण ना भद्दे होते थे और ना ही इतनी गालियों का समावेश जो आजकल की फिल्मों में कूट कूट कर भरा है। बच्चों के साथ फिल्में नहीं देख सकते क्योंकि इतनी अभद्र भाषा का प्रयोग किया जाता है कि आने वाली पीढ़ी देखकर यही भाषा का उपयोग करेगी क्यूंकि कहते हैं ना बच्चे जितना पढ़कर नहीं सीखते उतना देखकर सीखते हैं। आजकल के कुछ इक्के दुक्के अभिनेता, अभिनेत्रियों और निर्देशकों को छोड़ दें तो ज़्यादातर लोग अनुसरण तो क्या अभिनय के लायक भी नहीं लगते।

जब फिल्म में पर्दे पर मुख्य नायक का किरदार ही सिगरेट फूंकता, शराब पीता और समानता और बराबरी के नाम पर बनने वाली फिल्मों में हिंसा और स्त्री से अभद्रता करता हुआ दिखाया जाता है, और आश्चर्य की बात ये है कि ऐसी फिल्मों को युवा पसंद भी करते हैं, तो हम क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?? यही कि हम अपने घर और आस - पास जो भी अभद्र और हिंसक घटनाएं देख रहे हैं उनके लिए कहीं ना कहीं हम और ये कहानियां ज़िम्मेदार हैं क्यूंकि वो लोग सिनेमा के नाम पर कुछ भी बनाते हैं पर गलती ज़्यादा उनकी है जो इन फिल्मों को देखते और फिर उनका अनुसरण भी करते हैं। कहीं ना कहीं ये बढ़ते शराब और ड्रग्स कल्चर के लिए इन्हीं फिल्मों में दिखाए गए भद्दे सीन ज़िम्मेदार हैं जो युवा पीढ़ी को आकर्षक लगते है पर उन्हें ये नहीं पता कि यही चीजें उनके भविष्य को अंधकार की गर्त में ले जाती हैं।

हां अभी भी कुछ निर्देशक और अभिनेता ऐसे हैं जो अच्छे सिनेमा के निर्माण में विश्वास रखते हैं, अच्छी कहानियां भी हैं जो सच में प्रेरक होती हैं चाहे वो देशभक्ति से जुड़ी हों, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हों या दमदार स्त्री पात्रों का चित्रण करती हों।

हमें ज़रूरत है ऐसे ही सिनेमा की जो सरल और सुदृढ हो, साफ सुथरा और प्रेरक हो क्यूंकि सिनेमा हमारे देश में केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं करोड़ों लोगों के जीवन के नज़रिए को बदलने का ज़रिया भी है।



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Shubha Pathak

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Well written article

  • Shubha Pathak · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks alot Sonia 😊

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    संदेशप्रद आलेख

  • Shubha Pathak · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanku bhai🙏

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    bahut hi badiya likha he shubha ji very nice

  • Shubha Pathak · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thankuuu Babita dear ❤️

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