जलाएं कुत्सित रावण इस बार

इस दशहरे अपने अंदर के वासना रूपी रावण को जलाने की जरूरत है।

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Shubha Pathak
Shubha Pathak 16 Oct, 2020 | 1 min read

लो फिर से आ गए माता रानी के नौ दिन नवरात्रे के। सभी ओर से नौ दिन तक जयकारा गूंजेगा शेरावाली माता का। भजन - कीर्तन, फूल - मिठाइयों से सब मां का दरबार सजाएंगे और मां के नौ दिनों के महत्व के बारे में बताएंगे। अष्टमी और नवमी को माता को हलुवा चने का भोग लगाकर, कंजक पूजन के लिए कन्याओं को बुलाएंगे, उन्हें पूजेंगे, खिलाएंगे, उपहार देंगे और दसवें दिन?????

सोचा है आपने दसवें दिन क्या होगा? जी वही जो हर बार होता है, दशहरे वाले दिन धूम - धाम से रावण का पुतला फूंक कर खुशियां मनाएंगे। बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाएंगे...... पर क्या सच में केवल रावण के पुतले फूंक देने मात्र से बुराई पर अच्छाई की जीत होगी? क्या हम सच में फूंक पा रहे हैं समाज के अनगिनत रावण रूपी इंसानों को? जो लांघ चुका है मर्यादा की हर लक्ष्मण रेखा को!

जिस माता के रूप को लोग नौ दिन पूजते हैं क्यों असल में बाकी के दिन उन्हें सिर्फ भोग की वस्तु ही समझते हैं?

क्यों देखते हैं उस महिला को वासना की नज़रों से जो ऊपर से नीचे तक साड़ी या बुर्के से ढकी है लेकिन कुत्सित नज़रे तो एक छोटी सी कन्या को भी नहीं छोड़ती तो फिर उनका क्या दोष?

नहीं दोष उनका नहीं लोगों की गंदी मानसिकता का है जो उस कन्या या महिला को देखकर भूल जाते हैं कि मां गौरी के नौ रूप हैं - शैलपुत्री, चंद्रघंटा, ब्रह्मचारिणी, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री और समय आने पर हर स्त्री महाकाली और चंडी रूप धारण कर सकती है। क्यों भूल जाते हैं कि स्त्री का हर रूप पूजनीय है, फिर चाहे मां हो, पत्नी हो या ऑफिस में तुम्हारे साथ काम करने वाली सहकर्मी।

एक अच्छा और सक्षम पुरुष वही है जो स्त्री के तन पर नहीं मन पर अधिकार कर पाए, अपने प्यार और अच्छे आचरण से नाकि बाहुबल से सिर्फ उसके तन को नोचने की फिराक में रहे।

जलाएं कुत्सित मानसिकता रूपी रावण को, सम्मान करे स्त्री के हर रूप का इसी जीवन में। यकीन मानिए वही सही मायनों में मां की सच्ची आराधना और बुराई पर अच्छाई की जीत का असली दशहरा होगा। ?✍️



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