डर

डर से भागने से बेहतर है उसे स्वीकार करना....

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 03 May, 2021 | 1 min read
Don't escape... Face it....

जानती हूँ, मैं तुमसे ना भाग पाऊँगी...

ए - डर मैंने स्वीकार किया तुम्हें।।


तुम्हें अब चाहे आँखों में रहना हो या दिल में...

यक़ीन करो मैंने दिल से प्यार किया तुम्हें।।

ए डर मैंने स्वीकार किया तुम्हें.....


पर ग़लतफ़हमी में मत रहना... 

कि तुम तोड़ दोगे मुझे...

हर बाधा से लड़ने का,

हथियार किया तुम्हें।।

सुनों डर स्वीकार किया तुम्हें....


तुम देखना... तुम हर पल मेरे अंदर...

मुझसे ही हारोगे... टूटोगे तुम भी.. 

मेरी हिम्मत के आगे... तब कहोगे...

यहाँ आकर तो बहुत बेकार किया तुमनें।।

मैंने वाकई स्वीकार किया तुम्हें....


डर तुम चाहे किसी नाम से, 

मेरा हिस्सा क्यों ना बन जाओ,

हर नाम पर पर पलट वार किया हमनें,

डर, मैंने स्वीकार किया तुम्हें।।

डर मैंने सच में, दिल से,

स्वीकार किया तुम्हें।।


शुभांगनी शर्मा

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