हल्दी और सौंठी

एक प्यारी सी कहानी बाल मन को समर्पित। हर बच्चा कोमल और अनमोल है। बाल मन में गांठ ना हो तभी व्यक्तित्व विकास सही से हो सकता है।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 18 Oct, 2020 | 0 mins read

" क्या माँ आप हमेशा दीदी की तारीफ करते हो, उन्हें डांटते भी नहीं।"

"वो क्या हमेशा सही होती हैं और मैं गलत।" रिद्धि रोते हुए सिध्दि की शिकायत करते हुए अपनी माँ से कहती है।

सुमेधा समझाते हुए उसे बांहों में लेती है। "नहीं बेटा ऐसा बिल्कुल नहीं है। आप ऐसा क्यों कह रहे हो। मैं आप दोनों को बहुत प्यार करती हूँ।"

"आप करते होंगे...पर सारे लोगों के लिए दीदी ही सबकुछ है। हमेशा कहते रहते हैं देखो सिद्धि ये काम कितना अच्छा करती है, बात कितनी अच्छी करती है, कितनी प्यारी है... और भी ना जाने क्या क्या । मेरे कान थक गए माँ। मैं क्या इतनी बुरी हूँ कि किसी को मुझमें कोई अच्छाई नज़र नहीं आती।" रिद्धि ने एक सांस में अपनी व्यथा सुना और सुमेधा बस उसे ताकती रही।

कुछ विचार करते हुए सुमेधा ने कहा," अच्छा एक कहानी सुनोगी? छोटी सी है...."

"माँ आपको इस समय कहानी की पड़ी है।"

"रिद्धि आपको कहानी अच्छी लगेगी एक बार सुन तो लो।"

रिद्धि ने अपनी मूक सहमति देते हुए अपना सिर सुमेधा के गोद में रख दिया। सुमेधा अपने ममता भरे स्पर्श से उसके बाल सहलाते हुए कहानी सुनाती है.....

बहुत पुरानी बात है दो बहनें एक परिवार में थी। एक का नाम था हल्दी और दूजी सोंठी। दोनों ही बहुत प्यारी थीं। और दोनों के भिन्न भिन्न गुण थे। पर सभी को प्यारी "हल्दी" थी। सौंठी ये बात सहन नहीं कर पाती और उसका स्वभाव धीरे धीरे कड़वा हो गया। वहीं दूसरी और हल्दी सबके आंखों का तारा। ईर्ष्या ने सौंठी के मन में घर कर लिया। ऐसे ही दिन बीत रहे थे.... एक दिन उससे रहा ना गया और उसने अपनी बहन से पूछ लिया कि "तुम्हारे अंदर ऐसा क्या है जो हर कोई तुम्हारा गुणगान करता रहता है"। हल्दी ने बड़ी सहजता से उत्तर दिया, "मुझे ये तो नहीं पता कि मुझमें क्या है पर मैं यह जानती हूं कि में जहां जाती हूं वहाँ घुल मिल जाती हूं, सभी से प्रेम और उल्लास से मिलती हूँ, और किसी से कड़वी बातें कहकर दिल नहीं दुखाती...।" यह सुनकर सौंठी को बड़ा बुरा लगा और बात समझ आ गई कि सभी हल्दी को क्यों प्रेम करतें हैं। "

यह कहानी सुनाने के बाद सुमेधा रिद्धि से कहती है, " इसलिए बेटा हल्दी हम हर व्यंजन में डालते हैं और सौंठ का उपयोग कुछ विशेष अवसर पर ही करतें हैं। पर इसका मतलब यह तो नहीं कोई किसी से कम है।"

" पर हाँ, हम अपने मधुर स्वभाव से सबको अपना बना सकतें हैं।"

माँ की बातें सुनकर रिद्धि उछल कर बोल पड़ी, " अब मैं भी दीदी की तरह बनकर दिखाउंगी पर अपने अंदाज़ में।" यह कहते हुए वह सिद्धि के पास भागते हुए गयी और ज़ोर से बोली, " दीदी !! मैं भी हल्दी हूं!! हम दोनों हल्दी हैं!! चलो सबको बताएं हम दोनों हल्दी हैं।"

सिद्धि आश्चर्य से माँ की ओर देखती है।

और माँ दोंनो को देख प्रफुल्लित होती है,

"ये हैं मेरी प्यारी मेधा दीदी और उनकी शरारती छुटकी सुमेधा, मेरी हल्दी और सोंठी।"




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