सोचती हूँ... कहाँ से ये अथाह... जल स्त्रोत लाते हो। क्षण में हो सूखे, क्षण में तर हो जाते हो।। सुख हो या दुःख, बस यूँही भीग जाते हो। नयना मेरे, क्यों... भ्रम जाल फैलाते हो।। कोरों को अपनी, काजल से सजाते हो। देख किसी को, बस यूँही हर्षाते हो।। बोलो ना, नयना... क्यों झुक जाते हो?? ताक कर जी भर के, फिर शर्माते हो।। विचलित हो, सरपट... विचरण कर आते हो। कितने लोभी हो, कितना ललचाते हो।। नयना मेरे, बड़े... निर्मोही बन जाते हो, जब देख कर भी किसी को, नयना चुराते हो।। कई बार मुझे... धोका दे जाते हो। जब ना ना कहकर भी, हाँ कर जाते हो।। बोलो ना नयना, क्यों तुम... बस यूँही बातें बनाते हो। बस यूँही हर बात पर, तर हो जाते हो।।
नयना मेरे
नयनों की बोली नयना ही जाने....
Originally published in hi
Shubhangani Sharma
09 Dec, 2020 | 0 mins read
Eyes speak..
3 likes
Support Shubhangani Sharma
Please login to support the author.
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
उम्दा कृति
धन्यवाद संदीप जी
Please Login or Create a free account to comment.