झूठा विश्वास

डिजिटल दुनिया का अकेलापन और टूटता विश्वास।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 29 May, 2022 | 0 mins read
Digital world

एक दफ़ा मैं एक सच्चे दोस्त की तलाश में निकला,

अंधेरे में निकला उजास में निकला।।


दरवाज़े खोल अपने, मैं बदहवास निकला,

मिलेगा कोई ज़रूर इस कयास में निकला।।


कई मुस्कुराते चेहरे नज़र आये मुझे,

उनसे मिलकर भी मैं एक अकेला उदास निकला।।


छूकर कुछ बातें गुज़र गयी मुझको,

कुछ से दामन बचा कर मैं अनायास निकला।।


रोकना चाहा मैंने अपने से सायों को,

पर झूठा वह भी, मेरा एहसास निकला।।


सच मानों एक बार फ़िर मैं भीड़ से हताश निकला,

दोस्त मिलेगा कोई मुझे, झूठा ये विश्वास निकला।।


शुभांगनी शर्मा







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