जी....मैं रुद्रा।।

विवाह के समय आज भी वधु का नाम बदलने की परंपरा चली आ रही है। कारण कोई भी हो सकता है। पर क्या ये आवश्यक है? एक सवाल......

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 20 Aug, 2020 | 1 min read


“ अजी सुनती हो रुद्रा के ससुराल से संदेशा आया है उन्होंने शा5दी का कार्ड भिजवाया है| देखो तो जरा 3 – 4 डिजाइन है| कौन सी अच्छी लग रही है?”


 रुद्रा की मां कमरे से बैठक में आती हैं और देखती हैं, “अरे!! यह क्या इसमें तो वधु के नाम के स्थान पर सौम्या का नाम लिखा हुआ है। ऐसा क्यों?”

शर्मा जी कहते हैं, “अरे!! रुद्रा के घर वाले कह रहे थे कि यह नाम थोड़ा अच्छा नहीं लगता!!” 

“ऐसा क्यों? क्यों अच्छा नहीं लगता? हमें तो बहुत अच्छा लगता है। हमने इतने प्यार से नाम रखा है।“ माँ ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा।“

“ नाम तो अच्छा है.. पर बात यह है कि, उनका कहना है कि उनके लड़के का नाम है विनय, उसके सामने रुद्रा नाम थोड़ा सा रोबीला लगता है। इसलिए वे रुद्रा का नाम बदल कर सौम्या रखना चाहते हैं।“ शर्मा जी ने विस्तार से बताया।

“यह क्या बात हुई? इतने प्रेम पूर्वक हमने हमारी बिटिया का यह नाम रखा था। औऱ फिर रुद्रा को भी अपना नाम बहुत प्रिय है।“ माँ ने विचलित होते हुए कहा।

 “देखते हैं शुक्ला जी से बात करेंगे वह क्या कहते हैं। हो सकता है कि वह भी हमारा पक्ष समझे।“ शर्मा जी भी विवशता भरे स्वर में कहते हैं।

यह सारी वार्तालाप दूसरे कमरे में बैठी रुद्रा के कानों तक भी पहुँच रही थी । वह इसी उधेड़बुन में थी कि क्या करें? क्या उससे विनय से बात करनी चाहिए? या किसी और से.........यह सोचते हुए उसने कुछ निश्चय किया फिर अपना फ़ोन उठाया और छत की ओर चली गयी। 

दूसरी ओर फ़ोन की घंटी के रूप में शिवाष्टक की ध्वनि सुनाई देती है।

“हेलो....” सधी हुई आवाज़ में उत्तर मिलता है।

 “जी.... पापा जी। मैं......रुद्रा।“ रुद्रा झिझकते हुए कहती है।

“ जी बेटा जी। बोलो...कैसे फ़ोन किया आपने? कार्ड पसंद आए आपको? 

और आपका नाम?”

“जी उसी विषय में आपसे बात करना चाह रही थी।“ रुद्रा ने सकुचाते हुए कहा।

“जी बेटा निसंकोच हो कहो।“ शुक्ला जी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहा।

“जी पापा जी आप मेरा नाम क्यूँ बदलना चाहते हैं?” रुद्रा ने पूरी हिम्मत बटोरते हुए कहा। इससे पहले शुक्ला जी कुछ कहते उसने पुनः कहा।“ पापा जी…. मेरे माता पिता ने मुझे ये नाम इसलिए दिया क्योंकि उनकी शिव और पार्वती में असीम आस्था है। दूसरी बात वे चाहते थे मैं सदैव निडर और निःसंकोच हो रहकर जीवन में आगे बढ़ती रहूं। क्या मेरे नए परिवार को मेरी यह आज़ादी नापसंद रहेगी।“

“नहीं बेटा आप गलत सोच रहे हैं। सिर्फ शादी के कार्ड में आपका नाम बदल रहे हैं। वो भी इसलिए कि विनय के नाम और स्वभाव से….” शुक्ला जी अपनी बात कह ही रहे थे तब रुद्रा ने फिर कहा। “पापा जी मैं अपनी हर वस्तु अपने मायके मैं ही छोड़ कर आने वाली हूँ। यहां तक कि मेरा उपनाम भी। पर मेरा यह नाम मेरी पहचान है, मुझसे आत्मा से जुड़ा है। यह मुझसे ना छोड़ा जाएगा।“ 

“जहां तक विनय जी के स्वभाव और नाम की बात है, में हमेशा उनसे प्रेम और सम्मान से अपना संबंध निभाऊंगी..परस्पर सम्मान से। अपनी बात सबके समक्ष प्रस्तुत करूँगी पर किसी का निरादर नहीं करूंगी। स्नेह और अपनेपन से अपने नए घर को संवारने का प्रयास करूँगी। और इन सारी बातों का संबंध मेरे नाम से नहीं रहेगा। वैसे भी शेक्सपियर ने कहा है ना नाम में क्या रखा है’।

दूसरी और शुक्ला जी अपनी हंसी दबाते हुए कहते हैं, ” ठीक है मैं आपके पिताजी से बात करता हूं।“

रुद्रा ने लंबी सांस लेते हुए फोन रख दिया फिर अपने नियत कार्य में लग गई। वहाँ दूसरी और शुक्ला जी मन ही मन विचार कर रहे थे कि सच ही तो है नाम में क्या रखा है? जो बच्ची इतनी सुलझी हुई हो उसका तो पूरे दिल से स्वागत करना चाहिए।

दूसरे दिन शर्मा जी के यहां एक नया कार्ड आता है। यह क्या.. वधु का नाम “रुद्रा”..और सबसे नीचे बाल मनुहार नहीं बल्कि.. 

“ शर्मा परिवार की रुद्रा और शुक्ला परिवार की होने वाली रौनक का दिल से स्वागत।“ शर्मा जी की पढ़ते हुए आँखे छलक गई। उनकी बिटिया अब वाकई अपना जीवन निडर और निःसंकोच हो व्यतीत करेगी। पूरे प्रेम और सम्मान के साथ।


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Shubhangani Sharma

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  • Sushma Tiwari · 3 years ago last edited 3 years ago

    वाह 👏👏साहसिक कदम.. शुरुआत ही अच्छी हो तो जीवन में शांति और सौहार्द रहेगा.. अच्छी कहानी

  • Shubhangani Sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    सही कहा आपने सुषमा जी

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