औरत

ये जवाब है उस हर सवाल का जो उन औरतों आँखों में आते हैं जिनकी आँखें देखती हैं पिंजरों से बाहर के आसमान और आज़ादी को... वो जानना चाहती हैं उनके हिस्से ये जो भी आया है उसका आखिर बंटवारा किसने किया था?....पढ़िएगा 🍁

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Shivani (Paakhi)
Shivani (Paakhi) 30 Jul, 2022 | 1 min read


सदियों पहले आदमी ने सोचा की कैसे इन स्त्रियों को हम खुद से नीचे रखेंगे,

आम कर देंगे इनकी हर कुदरती खूबी, हम इन्हें खुद से पीछे रखेंगे….

बनाएंगे हम इंसानी मशीने… उनके दिमाग में हम अपने कायदे रखेंगे,

वो काम करेंगी, जीएंगी, लड़ेंगी और मरेंगी भी तो हमारे लिए, हम इन रोबोट्स का नाम औरत रखेंगे…

चलो हमारा काम ख़त्म… अब कोई स्त्री मर्द से ऊपर ना जा पाए इस बात का ख्याल खुद औरत ही रखेगी,

वो बनाएगी खुद के जैसी और औरतें, वो पीड़ी दर पीड़ी इसे परम्परा रखेगी…

ये औरतें बनेगी दुश्मन हर लड़की कि जो हमारे उसूलों से बहार कदम रखेगी,

औरतें जान ही नहीं पाएंगी वो एक मशीन हैं, जो सदियों पुरानी डरे हुए मर्दों की सोच से निकलेंगी….



तो मुझे जानना है हर औरत से की कभी पूछा है अपने आप से की ऐसा क्यूँ है? हम ऐसे से क्यूँ है? हमारा सिस्टम ऐसा क्यूँ है?

बांजन को पुत्र देत, निर्धन को माया…बांजन को पुत्री क्यूँ नहीं …संतान की जगह सिर्फ पुत्र क्यूँ है…

पति मर जाए तो विधवा का जीवन, और पत्नी मर जाए तो दूसरी शादी,

विदाई की रीत, घूँघट का बोझ.. हमारे लिए हर नियम इतना कठिन क्यूँ है…

कौन है रचेता…बताओ न..आखिर ये चुप्पी क्यूँ है…


भगवान के बनाये तो नहीं है ये फ़र्क़ और नियम,

अगर मैं कमजोर हूँ तो मेरे कंधों पर दुनियाँ का कारवांन क्यूँ है…

घर की इज़्ज़त, देहलीज़,कानून हमारे हिस्से में,

तो फिर मर्दों के हिस्से में आसमान क्यूँ है…

9 महीने कोख मेरी, दूध मेरा, पीड़ा मेरी,

फिर पिता का नाम ही पहचान क्यूँ है…

प्रजनन का जब दर्द एक सा है ,

तो सिर्फ बेटे के नाम जायदात क्यूँ है…

कौन है रचेता…बताओ न…ये चुप्पी क्यूँ है


है औरत की पहचान एक मर्द से,

मुझे हमेशा पिता, भाई या पति की जरूरत क्यूँ है…

मैं बनु जो चाहे डॉक्टर, इंजीनियर,

आखिर में घर संभालना ही मेरी मंजिल क्यूँ है…

सबके हिस्से हैं अपनी ज़िन्दगी,

मेरे में बेटी, बहु, फिर माँ बन जाना…यानि इतनी कुर्बानीयाँ क्यूँ है…

मेरे सपने, मेरी नौकरी ..मेरी कद्र, मेरा सम्मान…एक आदमी से कमतर क्यूँ है..

कौन है रचेता… बताओ न…आखिर ये चुप्पी क्यूँ है…


वो जिनके बारे में सब कहते हैं की चार लोग सुनेंगे तो क्या बातें बनाएंगे उनमें से तीन तो… औरत हैं,

मर्द बेटी न होने का दुख भले ना कभी मनाये पर बेटा न होने का दुख मनाने वाली और सिर्फ बेटियांँ होने की खुशी खा जाने वाली…औरत है…

मर्द एहम है- तुम कमतर…धीमे बोलना- चलना झुक कर…भाईयों यानि लड़को से बहस नहीं करते - चलो हाथ बंटाओ रसोई में चल कर…ये सब सिखाने वाली…औरत है,

कॉलेज पढ़ने जाना है वो भी बाहर?...ये सुनते ही मेरे चरित्र, भविष्य और घर की मान मरियादा पर टिप्पणीयाँ देती मेरी माँ दादी, ताई, बुआ सब…औरत है…

उन दिनों में रसोई और पूजा घर से तुम्हारी सीमा बताने वाली,

लड़कियों के पंख कतरने वाली, सपने खा जाने वाली, कायदे कानून बताने वाली…हमको कमजोर बनाने वाली…अफ़सोस एक औरत है…

कड़वा है मगर सच है…औरत की सबसे बड़ी दुश्मन खुद औरत है…


दहेज़ हो या भ्रूण हत्या…कहीं न कहीं वजह औरत है,

उसे ही नहीं चाहिए बेटीयाँ,उसे ही बेटों की शादी में दहेज़ की चाहत है…

खुद की बेटियों को showpiece बनाके लड़के वालों को दिखाने वाली…फिर उसे देखने भी वाली…

बहु अगर गरीब घर से हो तो उसे ताने सुनाने वाली

जिसका बेटा ना हो पाए वो बांज है, बेसहारा है और शायद बदकिस्मत भी…बार बार उसे ये बात बताने वाली

विधवा और divorcee की तो ज़िन्दगी ही बेवजह है उन्हें ये चीज समझाने वाली,... सब कोई औरत है…

पीड़ित भी औरत और पीड़ा भी औरत है…

कड़वा है मगर सच है औरत की दुश्मन खुद औरत है…


कुछ गलत हो तो कपड़ों को वजह बताने वाली,

वक़्त से घर आया करो कहके डराने वाली,

रिश्ते निभाते हुए बेटियों की चीखें दवाने वाली,

घरेलु हिंसाओं से भरी शादियों को आम बताने वाली,

मर्द को सही तुम्हें गलत ठेहराने वाली,

झूठी इज़्ज़त के लिए मार देने और मर जाने वाली,

खुद के लिए कदम उठाने वाली स्त्री को खुदगर्ज़ बताने वाली…

आदमियों से ज्यादा टोकने, कोसने वाली…. बदनाम करा दिया…इससे अच्छा मर जाती या मार दी जाती…

ये सब सोचने, बोलने वाली औरत है…

कड़वा है मगर सच है…औरत की दुश्मन औरत है…


अब जब पैदा हो कोई नन्ही परी, उसे झट से गले लगाना,

पहली, दूसरी या हो आखिरी उम्मीद ही क्यूँ न वो…तुम मुस्कुराना…

उसे पिंजरो के कायदे से दूर रखना, उसे नीला आसमान दिखाना,

देना उसके पंखो को हिम्मत, उसे खूब ऊँचा उड़ाना…

औरत अब तुम सखीयाँ बन जाना

एक दूजे का सा साथ निभाना ❣️


खुद के कोम की इज़्ज़त तुम रखना,

कोई करे जो बुराई तो उसे चुप कराना…

मेहनत देखना घड़ी नहीं घर लौटने पर उसकी,

पीठ थप थपाके तुम साहस बढ़ाना…

औरत अब तुम सखीयाँ बन जाना

एक दूजे का सा साथ निभाना ❣️


कोशिश मेरी है एक बेहतर दुनिया बनाना,

बसाना आज़ादी और बराबरी का जमाना…

एक बेहतर कल देना हमारी आज और आने वाली कल की बच्चियों को,

उन कच्चे उम्र के ख़्वाबों को बचाना…

हो एक वजूद सभी का जहाँ,

मुझे एक ऐसा जहान है बनाना…

औरत अब तुम सखीयाँ बन जाना,

एक दूजे का सा साथ निभाना ❣️


और जिस दिन ये हो जाएगा हमारी दुनियाँ बेहतर, सुंदर और सरल हो जायेगी ❤️



Paakhi🌷











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Shivani (Paakhi)

shivanipaakhi

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